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कषाय और कर्म
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तत्त्व सर्वाधिक अप्रिय लगता है। मेरी प्रिय वस्तु किसी ने क्यों उठाली? मेरे स्थान पर अन्य कैसे बैठ गया? मेरे समय के अनुसार व्यवस्था क्यों नहीं दी गई? मेरी इच्छानुरूप पदार्थ क्यों नहीं दिया? इत्यादि सामान्य-सामान्य निमित्तों में उत्तेजना बढ़ जाती है। ___कई बार तामसिक आहार अथवा शारीरिक दुर्बलता या बाह्य परिस्थिति के अभाव में भी क्रोधोत्पत्ति होती है। अन्तरंग में कषाय उदय होने पर व्यक्ति अकारण बरस पड़ता है। औचित्य-अनौचित्य का विवेक समाप्त हो जाता है। क्रोध सर्व संयोगों में, सर्व-स्थल पर, सब प्रकार से अनिष्टकारी है; किन्तु कभीकभी अन्याय के विरोध में, धर्म-रक्षा के लिए, कर्तव्यपालन हेतु किया गया क्रोध उपादेय मान लिया जाता है। अनेक बार ऐसी परिस्थिति निर्मित होती है कि यदि उसका प्रतिकार न किया जाए तो दूरगामी परिणाम भयंकर होते हैं। यह धारणा अनुपयुक्त है कि अधीनस्थ कार्यकरों को समुचित कार्य कराने हेतु क्रोध आवश्यक है। किसी को उचित प्रेरणा देने हेतु क्रोध नहीं, अपितु आचरण अपेक्षित होता है। उग्रता से उग्रता एवं मैत्री से आत्मीयता प्रकट होती है। क्रुद्ध भाषा सामने उपस्थित व्यक्ति को भी क्रोधित कर देती है। क्रोध प्रत्येक दृष्टि से हानिकारक है।
क्षुब्ध अवस्था में ज्ञान-तन्तु शिथिल हो जाते हैं। चैतन्य का ज्ञान-क्षेत्र संकुचित हो जाता है। यथा-भोजन हेतु कहीं गए, वहाँ क्रोध आ गया। उस समय थाली में क्या परोसा जा रहा है, वह स्थान कैसा सजा हुआ है, मेहमानों के चेहरे कितने आनन्दित हैं, किसी वस्तु का उसको ध्यान नहीं है, अतः मानसिक तनाव में विचार-क्षमता नष्ट हो जाती है।
उग्रता स्वास्थ्य के लिए अहितकर है। क्रोध से यकृत, तिल्ली और गुर्दे विकृत होते हैं।" रक्तचाप बढ़ता है, आँतों में घाव होते हैं, पाचक रस अल्पमात्रा में बनता है। अमेरिका की लाइफ मेगजीन में एक सचित्र लेख था कि हार्ट ट्रबल, स्टमक, ब्लड प्रेशर, अल्सर आदि रोगों का कारण आवेश है। तीव्र आवेश में फेफड़े, हृदय, मस्तिष्क स्नायु आदि के कार्य में तीव्रता आती है, रक्त मस्तिष्क में चढ़ जाता है। खून में जहर उत्पन्न होता है। क्रोध के कारण नाड़ी फट जाने से कई बार मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। ४. ठाणं/ स्थान ४ / उ. १ / सू. ८० ५. शारीरिक मनोविज्ञान ओझा एवं भार्गव | पृ. २१४ ६. सामान्य मनोविज्ञान की रूपरेखा/ पृ. ४२०-४२१
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