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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
हत्याएँ एवं आत्महत्याएँ क्रोध का ही दुष्परिणाम हैं। अपने शरीर पर तेल छिड़क कर अग्नि भभकाने वाले, किसी पर तेजाब फेंक देने वाले, किसी पर धारदार अस्त्र से प्रहार करने वाले इसी विकार से पीड़ित होते हैं।
सामान्यतया गृह-क्लेश, मारपीट का कारण क्रोधावेश होता है। परिवार में एक व्यक्ति के तीव्र क्रोधी होने पर अन्य सदस्यों में भी क्रोध संस्कार प्रबल बनने लगते हैं। घर में शान्ति नष्ट हो जाती है, प्रेम-मधुरता के स्थान पर कड़वाहट घुल जाती है। वैर-प्रतिशोध की भावनाएँ जन्म लेती हैं, वायुमंडल विषाक्त बन जाता है। वातावरण में भय व्याप्त हो जाता है। समाज, राष्ट्र, देश में उच्चपदों पर कार्यरत व्यक्ति यदि उग्रस्वभावी हो, तो वे संस्था के अकल्याणकर्ता होते हैं। व्यापारी व्यापारिक क्षेत्र में सफल नहीं होता।
क्रोधी व्यक्ति घर, परिवार, व्यापार, समाज आदि में असफलता के साथसाथ अपनी उग्रता के कारण कर्म-बन्धन में बँधता चला जाता है, आत्मा को मलिन बनाता है और दुर्गति का मेहमान बनता है। वर्तमान और भविष्य - दोनों को दुःखपूरित बनाता है।
क्रोध-शमन के सामान्य उपाय १. क्रोध आने पर मौन धारण कर लेना। ईंधन न डालने से अग्नि स्वतः शान्त हो जाती है। उत्तेजक वातावरण न बनने देने के लिए चुप्पी एक बहत बड़ा साधन है। कहा गया है, एक चुप्पी सौ को हरा देती है, अतः शान्ति का अमोघ साधन है - मौन।
२. वाणी पर नियन्त्रण न हो तो स्थान परिवर्तन उचित है। 'न रहे बाँस, न बजे बांसुरी' उक्ति अनुसार न सामने रहे, न बोलने की आकुलता हो।
३. अपने क्रोध को शान्त करने के लिए अन्य क्रियाओं में संलग्न हो जाना। कार्य में मन न जुड़ता हो तो दर्पण में अपने विकराल रूप को देखकर शान्त होने का प्रयास करना। शीतल जल का सेवन करना।
सामान्य अशान्ति में चित्त-शान्ति के लिए योग पद्धतियाँ उपयोगी होती हैं, यथा
४. जप का आलम्बन लेना। किसी पवित्र सूत्र की पुनरावृत्ति जप है।" मंत्र को श्वासोच्छ्वास के साथ जोड़ा जा सकता है। व्यर्थ के विचारों से हटकर अन्तर्मुख बनने की यह एक सरल प्रक्रिया है। अभ्यास-वृद्धि के साथ-साथ कल्पना ७. आत्मज्ञान अने साधना पथ/अमरेन्द्र मुनि/पृ.
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