Book Title: Kashay
Author(s): Hempragyashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 170
________________ १३४ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन कषाय का मूल है-मोह। मिथ्यात्व सहित मोह संसार-वृक्ष की जड़ है। इस अवस्था में स्वरूप अज्ञान, शरीर में अहंबुद्धि की मान्यता होती है। देहासक्ति के कारण प्राप्त संयोगों में सुख-दुःख की धारणा होती है। पर-पदार्थों में ममत्व एवं कर्मकृत अवस्थाओं में कर्तृत्व बुद्धि बनी रहती है। प्रगाढ़ मोहावस्था कषाय तीव्रता की परिणति है। कषाय-क्षय के क्रम में सर्वप्रथम अनन्तानुबन्धी कषाय रूप निबिड राग-द्वेष की प्रन्थि का छेद होता है। इस कषाय के उपशम अथवा क्षय होने पर सम्यग्दर्शन प्रकट होता है। सम्यग्दर्शन मुक्ति-महल का प्रथम सोपान है, मोक्षरूपी फल का बीज है, सिद्धि-गमन हेतु पहला कदम है। ३ 'मुझे कुछ बनना है' ऐसी महत्त्वाकांक्षा और 'मुझे कुछ चाहिये' ऐसी लालसा मन्द होने पर सम्यग्दर्शन की पात्रता बनती है। कषाय-मन्दता आत्म-ज्ञान के लिए पहली शर्त है। कषाय मन्दता हेतु कषाय का स्वरूप, हानि एवं कषाय-जय हेतु विचारणा-बिन्दु इस अध्याय में प्रस्तुत है। क्रोध क्रोधावस्था में विवेक पलायन कर जाता है, भले-बुरे की पहचान खो जाती है, बड़े-छोटे का भेद विस्मृत हो जाता है। क्रोध के मूल में प्रतिकार का भाव होता है। क्रोधी क्रोध-पात्र को ही ध्यान में रखता है, स्वयं को नहीं। निष्पक्ष दृष्टि से विचार करने पर अपनी त्रुटि ज्ञात हो सकती है। पर क्रोधावेश में अन्य की ही भूल महसूस होती है। क्रोध कब आता है? जब..अपेक्षा उपेक्षा में बदल जाती है, कामनाओं की पूर्ति नहीं होती, परिस्थिति को यथावत् स्वीकार करने की मानसिकता नहीं होती; तब क्रोध का जन्म होता है। मालिक चाहता है- कर्मचारी नियत समय पर कार्य संभाले, गृह प्रमुख सोचता है- घर के सदस्य उसकी इच्छानुसार चलें, पति पत्नी से और पत्नी पति से अपेक्षा करती है कि उसकी इच्छा का सम्मान हो। अनेकानेक अपेक्षाएँ सामान्य मन में रहती हैं। उन अपेक्षाओं की अवहेलना होने पर व्यक्ति क्रुद्ध हो जाता है। विपरीत दृष्टिकोण से विचारणा होने पर भी व्यक्ति क्षुब्ध हो जाता है। किसी को हँसते देख अपना उपहास समझना, किन्हीं दो को गुप्त वार्ता करते देख अपनी निन्दा मानना, किसी के ध्यान नहीं देने पर अपना अपमान जानना आदि विचारों से अकारण शत्रुता भाव पनप जाता है। स्वार्थ-सिद्ध में बाधक ३. सम्यग्दर्शन| पृ. ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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