Book Title: Kashay
Author(s): Hempragyashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

Previous | Next

Page 182
________________ १४६ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन ५. सज्जन व्यक्ति इच्छाएँ अल्प करता है। स्व-स्त्री, स्व-धन में सन्तोष धारण करता है। सम्यग्दृष्टि लोभ को हेय मानता है, उपादेय नहीं। श्रावक की आवश्यकताएँ संक्षिप्त होती हैं। सर्व-विरति का लोभ मात्र मोक्ष अभिलाष रूप होता है। बाह्य परिग्रह त्याग कर आभ्यन्तर परिग्रह-ग्रन्थियों को तोड़ने का पुरुषार्थ होता है। कषाय विजय हेतु साधक विचारणा-स्तर पर बारह-भावना का चिन्तन एवं आचरण-स्तर पर बारह तप का अवलम्बन ग्रहण करता है। उपसंहार नींव के बिना इमारत नहीं, बीज के बिना वृक्ष नहीं, तन्तु के बिना वस्त्र नहीं, उसी प्रकार कषाय के बिना संसार संभव नहीं है। संसार का आधारस्तम्भ कषाय है। कषाय का अपर नाम संसार एवं संसार का पर्याय कषाय है। काषायिक-प्रवृत्तियों के हजारों रूप हैं, जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दृष्टिगोचर होते हैं। विश्व-राजनीति में दिन-प्रतिदिन वृद्धिगत होता परमाणुवाद संसार में आतंक फैला रहा है और नागासाकी-हिरोशिमा की विनाश-लीला का स्मरण दिला रहा है। सीमा-वृद्धि की अभीप्सा से युद्धों का जन्म हो रहा है, मैत्री सम्बन्धों में स्वार्थ मुख्यता दृष्टिगत है। देश राजनीति में पदलिप्सा एवं धन लोलुपता अधिनायकों को पतन-गर्त में धकेल रही है। आत्माप्रशंसा, परनिन्दा, आश्वासनों और झूठे वायदों का बाजार गरमागरम चल रहा है। आर्थिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार, काला बाजार, रिश्वत, मिलावट, अन्याय, अनीति, शोषण का बोलबाला है। येन-केन-प्रकारेण अर्थ-संग्रह की मानसिकता छाई है। समाज में दहेज, लेन-देन, आदि प्रवृत्तियों को लेकर हत्या एवं आत्महत्याओं का प्रतिशत बढ़ता चला जा रहा है। मध्यमवर्ग संत्रस्त है, उच्चवर्ग के आडम्बरों एवं वैभव विलास के प्रदर्शन से। सामाजिक कार्यक्रमों में धनवानों का विशेष सम्मान होना लोभ कषाय की मुख्यता का ही परिणाम है। जीवन में नैतिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है। पारिवारिक क्षेत्र में सम्पत्ति-बँटवारा, कामकाज, परस्पर विपरीत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192