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कषाय-जय
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धारणाओं, महत्त्वाकांक्षा एवं भोग-सामग्री की इच्छाओं से मानव त्रस्त है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दुःख, अशान्ति, व्याकुलता परिलक्षित होती है।
तामसिक कषाय विध्वंस, हिंसा, तोड़-फोड़, उपद्रव में कार्य कर रहा है, राजसिक कषाय परिवार परिचितों के व्यावहारिक हितों की सुरक्षा भावना में जुड़ा है और सात्त्विक कषाय से कला, शिल्प, साहित्य, संस्थाओं आदि का विकास होता दिखाई दे रहा है। तामस की अपेक्षा राजस एवं राजस की अपेक्षा सात्त्विक कषाय समुचित है; किन्तु निराकुल अवस्था की प्राप्ति हेतु अकषाय अवस्था अनिवार्य है।
कषाय-विकार से संसार का कोई प्राणी अपरिचित अथवा अप्रभावित नहीं है; किन्तु उसे दुःख का कारण मानने वाले लोग विरल हैं। काषायिक-वृत्तियों को समझकर कषायाग्नि का शमन हो, यही मंगल भावना इस शोध प्रबन्ध में समाहित है।
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