Book Title: Kashay
Author(s): Hempragyashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 180
________________ १४४ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन ५. विचार करें, माया कषाय अनन्त दु:खों का कारण है। तिर्यञ्च गति का हेतु है। १७ ६. 'उत्तराध्ययन' में कहा गया है-१८ माया पर जय करने से सरलता गुण आर्जव धर्म प्रकट होता है। सरलता का अर्थ मूर्खता नहीं है। किसी ने ताश खेलने बुलाया, मन नहीं है; किन्तु सीधे सरल हैं, अतः क्या इन्कार करना। यह सरलता नहीं बुद्धिहीनता है। सरलता अर्थात् अपवित्रता की एकरूपता नहीं है। दुकानदार भीतरी कक्ष में दूध में पानी मिला रहा है और बाहर से ग्राहक की आवाज आई, 'क्या कर रहे हो? दूध जल्दी चाहिए।' इस प्रश्न के उत्तर में कहना, 'भैया! मैं पानी मिला रहा हूँ।' यह सरलता की एकरूपता नहीं है। अपवित्र कार्य ही गलत है। भाव, भाषा एवं व्यवहार- त्रियोग में पवित्रता उत्तम सरलता है। ७. सम्यग्दर्शन से सहज सरलता का प्रारम्भ होता है। श्रीकृष्ण की सरलता कितनी? विदुर के यहाँ केले के छिलके खा लिये। किन्तु मूर्खता नहीं थी - वे अतुल बुद्धि वैभव के स्वामी थे। सम्यग्दृष्टि, देश-विरति और सर्व-विरति में क्रमश: सरलता अधिकाधिक होती है। जैसलमेर के थेरूशाह भंसाली को पुण्ययोग से चित्रावेल नामक अक्षयकारिणी वनस्पति प्राप्त हई थी। परमार्थ और पुण्य-कार्यों में पैसे का सदुपयोग होने लगा। प्रशंसा बढ़ती गई। साथ ही ईर्ष्यालु व्यक्तियों की जलन बढ़ती गई। राजा के कान भर दिये गये। थेरूशाह को वस्तुस्थिति का ज्ञान होते ही विचार आया, 'यदि यह बेल राज-भंडार में जायेगी, तो राजा के दर्द को बढ़ाने में कारण बनेगी।' उन्होंने बेल को रेत के गड्ढे में डाल दिया। राजा के पूछने पर कहा - 'राजन! मैं असत्य नहीं बोलता, कपट नहीं करता। मेरे पास बेल आई थी, आज नहीं है, जहाँ फेंकी है वह स्थान दिखा सकता हूँ।' राजा ने गड्ढे की मिट्टी हटवाई; किन्तु बेल के प्रभाव से मिट्टी अक्षय हो गई। माया कषाय की मन्दता होने पर सरलता के साथ विवेक का संगम होता है। लोभ इच्छा मात्र लोभ कषाय है। इच्छाएँ अनन्त हैं। सम्मान की अभिलाषा, पद की कामना, इन्द्रिय-विषयों की अभीप्सा, जीवन-सुरक्षा की चाहना, स्वस्थता की आकांक्षा इत्यादि अनेक इच्छाएँ होती हैं। १७. माया तिर्यग्योनस्य तत्त्वार्थ सूत्र/ अ. ६/ सू. १७ १८. उत्तराध्ययनसूत्र-अ. २९/ सू. ७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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