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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
जगत में जितने जीव हैं, उतने स्वभाव हैं। किसी की अज्ञान दशा होती है, किन्तु कषाय मन्द होता है। किसी की ज्ञान - दशा होती है, किन्तु कषाय तीव्र दिखाई देता है। ऐसा क्यों है? जब अनन्तानुबन्धी कषाय संज्वलन स्तर की होती है, तब अज्ञानावस्था में भी मन्द कषाय परिणति दृष्टिगोचर होती है। जब संज्वलन आदि कषाय अनन्तानुबन्धी स्तर का हो, तब आत्मज्ञानी मुनि के भी तीव्र कषाय परिणाम महसूस होते हैं। इसी आधार पर आत्मा में गति - परमाणुओं का आस्रव होता है। गति योग्य कर्म परमाणु हर समय आत्मा में आते रहते हैं; किन्तु गति-निर्धारण आयु-बन्ध के पश्चात् होता है।
'स्थानांग' में इसी अपेक्षा गति - परमाणुओं का आगमन बताया गया है अनन्तानुबन्धी स्तर का अनन्तानुबन्धी कषाय होने पर नरक -गति परिणाम, अप्रत्याख्यानी स्तर के अनन्तानुबन्धी कषाय में तिर्यञ्च गति परिणाम, प्रत्याख्यानी स्तर की अनन्तानुबन्धी कषाय होने पर मनुष्य - गति परिणाम, संज्वलन स्तर की अनन्तानुबन्धी कषाय में देव - गति परिणाम होते हैं।
प्रसन्नचन्द राजर्षि मुनिवेश में साधनारत थे। सूर्य की आतापना ग्रहण कर रहे थे। महाराजा श्रेणिक ने प्रभु महावीर से प्रश्न किया, 'प्रभो! इस समय यदि मुनि काल-धर्म प्राप्त करें तो क्या गति हो ?' प्रभु ने उत्तर दिया, 'नरक -गति' ! कुछ क्षण पश्चात् पुनः यही प्रश्न करने पर उत्तर प्राप्त हुआ, 'देव - गति' ! कुछ समय के बाद देव-दुन्दुभिनाद श्रवण कर जब पुनः प्रश्न किया, 'प्रभो! किसे केवलज्ञान हुआ है?' प्रभु कहा, 'प्रसन्नचन्द राजर्षि को । ' ध्यान-साधना में प्रसन्नचन्द राजर्षि के भाव परिणाम संज्वलन कषाय होने पर भी अनन्तानुबन्धी स्तर तक पहुँच गए थे। विवेक जागृत होने पर परिणाम - विशुद्धि होती गई एवं पूर्ण अकषाय अवस्था प्रकट हुई।
संज्वलन मान की काल मर्यादा अधिकतम पन्द्रह दिन वर्णित है; किन्तु बाहुबलि मुनि वर्ष भर मान शल्य धारण किए ध्यानावस्थित रहे। संभवतः अप्रत्याख्यानी स्तर का संज्वलन मान था । अध्यवसाय आधार से कषाय के असंख्य भेद भी संभव हैं।
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