________________
कषाय और कर्म
रहता है। इन अवस्थाओं में कषाय के चार प्रकार, योग के तीन प्रकार, कृत कारित एवं अनुमत रूप तीन प्रकार एवं संरम्भ, समारम्भ तथा आरम्भ रूप तीन प्रकार होते हैं। संरम्भ अर्थात् हिंसात्मक कार्य का संकल्प, समारम्भ अर्थात् उस कार्य हेतु साधन जुटाना, आरम्भ अर्थात् वह कार्य करना। कृत अर्थात् करना, कारित अर्थात् करवाना, अनुमत अर्थात् अनुमति देना। इन १०८ अवस्थाओं के नाम निम्नांकित हैं
(१) क्रोध कृत काय संरम्भ (२) क्रोध कृत काय समारम्भ (३) क्रोध कृत काय आरम्भ (४) क्रोध कृत वचन संरम्भ (५) क्रोध कृत वचन समारम्भ (६) क्रोध कृत वचन आरम्भ (७) क्रोध कृत मन संरम्भ (८) क्रोध कृत मन समारम्भ (९) क्रोध कृत मन आरम्भ (१०) क्रोध कारित काय संरम्भ (११) क्रोध कारित काय समारम्भ (१२) क्रोध कारित काय आरम्भ (१३) क्रोध कारित वचन संरम्भ (१४) क्रोध कारित वचन समारम्भ
(१५) क्रोध कारित वचन आरम्भ (१६) क्रोध कारित मन संरम्भ (१७) क्रोध कारित मन सभारम्भ (१८) क्रोध कारित मन आरम्भ (१९) क्रोध अनुमत काय संरम्भ (२०) क्रोध अनुमत काय समारम्भ (२१) क्रोध अनुमत काय आरम्भ (२२) क्रोध अनुमत वचन संरम्भ (२३) क्रोध अनुमत वचन समारम्भ (२४) क्रोध अनुमत वचन आरम्भ (२५) क्रोध अनुमत मन संरम्भ (२६) क्रोध अनुमत मन समारम्भ (२७) क्रोध अनुमत मन आरम्भ
जिस प्रकार क्रोध कषाय की यह सत्ताइस अवस्थाएँ हैं, उसी प्रकार मान, माया एवं लोभ कषाय की सत्ताइस-सत्ताइस अवस्थाएँ हैं। जीव के भावाधिकरण की यह कुल एक सौ आठ अवस्थाएँ हैं। इनकी विशेष विवेचना की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि नाम के अनुसार प्रवृत्ति का बोध हो जाता है। उदाहरणार्थक्रोध कृत काय संरम्भ। क्रोधपूर्वक अपने द्वारा (कृत) किसी को मारने का (काय) संकल्प (संरम्भ) करना ।
इन समस्त अवस्थाओं में मूल भाव कषाय है। मन से उठने वाले कषायजनित विकल्प ही इस शरीर तथा जिह्वा को प्रेरित करके कोई न कोई शारीरिक या वाचिक क्रिया करने को बाध्य करते हैं। ये विकल्प चित्त में व्याकुलता पैदा करते हैं। इन कषायजन्य इच्छाओं, विकल्पों एवं विचारों का अन्तर्जगत में उठना ही भावास्रव है। इनके परिणामस्वरूप आने वाला कर्म समुदाय द्रव्यास्रव है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org