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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
दूसरे जन्म में क्रोधी तापस के रूप में आश्रम में घूमते थे। निषेधाज्ञा तोड़ने वाले पर फरसे का प्रहार कर प्राणसंहार कर देते थे।
तीसरे जन्म में दृष्टिविष सर्प हुए। जिनके दृष्टिनिपात से जीव प्राणविमुक्त हो जाते थे। इस प्रकार क्रोध-संस्कार द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव - सभी रूपों में गुणाकार होता चला गया। तालिका - माध्यम से कहा जा सकता है___ द्रव्य
काल क्षेत्र भाव चण्डकौशिक के भव में शिष्य पर रात्रि में उपाश्रय में हाथ से मारने को दौड़े थे। तापस के भव में कुछ व्यक्तियों पर दिवस में आश्रम में फरसे से मारने दौड़ते थे। सर्प के भव में प्रत्येक व्यक्ति पर रात्रि-दिवस में जंगल में दृष्टि से विष बरसाते थे। ___क्रोध के समान मान, माया एवं लोभ कषाय की प्रवृत्ति भी दिखाई देती है। लंकापति रावण द्वारा बहुतेरा प्रयास करने के पश्चात् भी जब महासती सीता शील-पथ से विचलित नहीं हुईं, तब विभीषण आदि रावण को समझाने लगे- 'हे ज्येष्ठवर्य! हमारा पक्ष अन्याय, अनीतिपूर्ण है। आप सीताजी को वापस लौटाकर युद्ध विभीषिका से बचें।' यह बात श्रवणकर रावण फुफकार उठा'हे विभीषण! अब ये शब्द तुम्हारे मुख पर नहीं आने चाहिए। मैं अपमान या पराजय के भय से सीता को कभी नहीं लौटाऊँगा। दुनिया कहेगी, रावण भयभीत हो गया।'६७ इतिहास साक्षी है कि रावण ने उस मान के वशीभूत हो लंकानाश कर दिया।
इसी प्रकार माया की प्रवृत्ति दिखाई देती है। मन में कुछ, वचन में कुछ एवं काय-प्रवृत्ति कुछ भिन्न ही होती है। राजा प्रदेशी को जहर देने पर भी जब मृत्यु नहीं आई तो रानी सूर्यकान्ता ने रोने का नाटक करते हुए राजा पर अपने बाल बिखेर दिए और गला दबा दिया।६८
लोभ कषाय की प्रबलता सर्वत्र दिखाई देती है। अतः लोभ को पाप का बाप कहा गया है। गणिका के हाथ का भोजन नहीं करने के व्रतधारी पण्डितजी के समक्ष जब स्वर्णमुद्राओं का ढेर लगा तो मन विचार करने लगा'यहाँ कौन है देखने वाला? एक बार भोजन कर लेने पर इतना धन मिल जायेगा। जिन्दगी में आनन्द ही आनन्द छा जायेगा।' ऐसे अनेकों उदाहरण जगत में, अपने जीवन में घटित होते रहते हैं। अत: चारों कषायों को पापबन्ध का कारण बताया गया है।
६६. (अ) श्री कल्पसूत्र/महावीर चरित्र ६७. जैन रामायण
६८. रायपसेणीसूत्र
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