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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
(१४-१५) पैशुन्य और परपरिवाद- पिशुन शब्द चुगली अर्थ का द्योतक है। ७८ अभ्याख्यानी झूठा कलंक लगाता है और पिशुनवृत्ति वाला व्यक्ति दूसरों के दोषों, त्रुटियों की चुगली करता है। उसकी छिद्रान्वेषी दृष्टि होती है। बच्चे तो प्राय. परस्पर एक-दूसरे की चुगली करते ही हैं; किन्तु बड़ी आयु वाले भी इस वृत्ति को विशेष अपनाते हैं। बहन, भाई की और भाई, बहन की; देवरानी, जेठानी की और जेठानी, देवरानी की! आपसी संबंधों में चुगली अधिक होती है। पैशुन्य वृत्तिवाला भेदी प्रकृति का होता है, उसका रस दूसरों के रहस्य खोलने में रहता है। गंभीरता का अभाव, मन की संकीर्णता होने पर मैत्रीभाव और वाणी संयम न होने पर यह वृत्ति पुष्ट होती है।
पर+परिवाद परपरिवाद। दूसरे के विषय में विपरीत कथन करना। चुगली प्रायः निकटतम संबंधों में होती है; किन्तु निन्दा किसी भी परिचित की हो सकती है। स्थानांग में कहा है- परेषां परिवादः परपरिवादो विकत्थनमित्यर्थः९ –दूसरों का अयथार्थ-मूल्यांकन करना। इसे अवर्णवाद या निन्दा कहा जाता है। झूठा कलंक अभ्याख्यान तीव्र द्वेष की परिणति में लगाया जाता है; किन्तु परपरिवाद आदत से भी हो सकता है। स्व-प्रशंसा एवं परनिन्दा का व्यसन होने पर व्यक्ति कहीं भी बैठेगा - उसकी जिह्वा परपरिवाद कार्य में निरत हो जायेगी। उसका रस पर-निन्दा में विशेष होता है। जैसे सुअर को विष्ठा-भक्षण में रस आता है; वैसे ही निन्दक को पर-दोष कथन में आनन्द आता है। मूलतः इसमें अहंकार कषाय की प्रबलता होती है। यशोविजयजी ने कहा है
'क्रोध अजीरण तप तणुं, ज्ञान तणुं अहंकार हो,
पर-निन्दा किरियापणुं, वन अजीर्ण आहार हो।' समयसुन्दरजी ने निन्दक को पीठ का मांस-भक्षक कहा है। कषाय की मलिनता में यह वृत्ति होती है और इस वृत्ति से कषाय अति पुष्ट होता जाता है।
(१६) रति-अरति-नोकषाय मोहनीय के भेदों में रति-अरति का समावेश है। रति-अरति जीव की प्रकृति नहीं विकृति है।
७८. प्रतिक्रमण सूत्र अर्थ संयुक्त/अतिचार सूत्र ७९. स्थानांग सूत्र/४८-४९ की वृत्ति ८०. आध्यात्मिक पद/निन्दा सज्झाय ८१. आध्यात्मिक पद/निन्दा सज्झाय
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