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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
दम्पति
रही। स्नेहराग में अरिष्टनेमि एवं राजीमती का उदाहरण प्राप्त होता है। नौ भव तक दोनों में सम्बन्ध बना रहा। कामराग में रूपसेन एवं सुनन्दा का दृष्टान्त है। पाँच भवों तक रूपसेन में सुनन्दा के प्रति काम-भोग की वांछा बनी रही। द्वेष भाव से सम्बन्धित गुणसेन-अग्निशर्मा का उदाहरण समरादित्य चारित्र में प्राप्त होता है। राजा गुणसेन के प्रति पनपा द्वेष भाव अग्निशर्मा में नौ भव तक चलता रहा। कभी पुत्र के रूप में, कभी माता, कभी पत्नी एवं कभी छोटे भाई के रूप में अग्निशर्मा गुणसेन के प्राणों का ग्राहक बना रहा।
___ यह अप्रशस्त राग एवं द्वेष- दोनों पाप स्थानक हैं। राग नितान्त एकान्त खराब नहीं है, किन्तु द्वेष नितान्त पाप रूप है।
स्नेहराग का अरिष्टनेमि एवं राजीमती का नौ भव का सम्बन्ध निम्न तालिकानुसार है१. धन कुमार
धनवती २. सौधर्म देवलोक में देव
देवी
दम्पति चित्रगति विद्याधर
रत्नवती
दम्पति ४. माहेन्द्र देवलोक में देव
देव
मित्र ५. अपराजित राजा
प्रियमती रानी दम्पति ६. आरण देवलोक में देव
देव ७. शंख राजा
यशोमती रानी दम्पति ८. देव-वैजयन्त विमान
देव
मित्र ९. अरिष्टनेमि
राजीमती
वाग्दत्ता तीव्र द्वेष-भाव का उदाहरण अग्निशर्मा का प्राप्त होता है। यह द्वेष सम्बन्ध नौ भवों तक चलता रहा जो निम्नांकित हैं१. गुणसेन राजा को
अग्निशर्मा ने तप्त रेत की वर्षाकर प्राणविमुक्त किया २. सिंहकुमार (पिता) की आनन्द (पुत्र) ने कैदी बनाकर हत्या की ३. शिखि (पुत्र) को
जालिनी (माता) ने श्रमण जीवन में विष मिश्रित आहार दिया ४. धनकुमार (पति) को धनश्री (पत्नी) ने मुनि रूप में लकड़ियों में जला दिया ५. जयकुमार (ज्येष्ठ भ्राता) की। विजय (लघुभ्राता) ने ऋषि रूप में हत्या की ६. धरण (पति) की
लक्ष्मी (पत्नी) ने श्रमण जीवन में हत्या की ७. सेन (चचेरे भाई) की विषेण (चचेरे भाई) ने मुनि रूप में हत्या की ८. गुणचन्द्र राजा को
वाण व्यन्तरदेव रूप में मारने का विचार किया ९. समरादित्य (केवली) को गिरिषेण (चण्डाल) ने मारने का भाव किया ७२. श्री कल्पसूत्र/अरिष्टनेमि चरित्र ७३. समरादित्य चारित्र
मित्र
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