Book Title: Kashay
Author(s): Hempragyashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 110
________________ ७४ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन उपरम एवं सपक श्रेणी में कषायों का उपशम व आप (९) उपशम एवं क्षपक श्रेणी में कषायों का उपशम व क्षय गुण ___ उपशम श्रेणी गुण क्षपक श्रेणी२ स्थान स्थान (८) सर्वप्रथम अनन्तानुबन्धी चतुष्क (८) अन. चतुष्क, तत्पश्चात् दर्शन उसके पश्चात् दर्शनमोहनीयत्रिक मोहनीयत्रिक, उसके बाद का उपशम अप्रत्या., प्रत्याख्या - आठ पुरुषवेदी - पहले नपुंसकवेद, उसके (९) कषाय बाद स्त्रीवेद का उपशम करता है। नपुंसकवेद एवं स्त्रीवेद का एक स्त्रीवेदी - पहले नपुंसकवेद, फिर साथ क्षय। पुरुषवेद का हास्य, रति, अरति, भय, शोक, नपुंसकवेदी - पहले स्त्रीवेद, फिर जुगुप्सा का क्षय। पुरुषवेद का उपशम करता है। भाग-२ हास्य, रति, अरति, भय, शोक, पुरुषवेद जुगुप्सा भाग-३ पुरुषवेदी - पुरुषवेद का, स्त्रीवेदी - संज्वलन क्रोध स्त्रीवेद का, नपुंसकवेदी -नपुंसकवेद संज्वलन मान का उपशम करता है। भाग-४ अप्रत्या., प्रत्या. क्रोध संज्वलन लोभ का अन्तर्मुहूर्त में भाग-५ संज्वलन क्रोध अनुक्रम से क्षय होता है। भाग-६ अप्रत्या., प्रत्या. मान भाग-७ संज्वलन मान भाग-८ अप्रत्या., प्रत्या. माया भाग-९ संज्वलन माया भाग-१० अप्रत्या. प्रत्या. लोभ भाग-११ संज्वलन लोभ के असंख्यात् खंड करके एक-एक खंड का उपशम गुण.१० संज्वलन लोभ का सूक्ष्मांश का (१०) संज्वलन लाभांश क्षय उपशम गुण.११ संपूर्ण कषाय-प्रकृतियाँ उपशान्त (१२) पूर्णतः कषाय क्षय (अ) विशेषा./ गा. १२८४ (ब) षष्टम कर्म-ग्रन्थ/गा. ७५-७७ (अ) विशेषा. / गा. १३१४ (व) षष्टम कर्म-ग्रन्थ / गा. ७८ संज्वलन माया | ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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