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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
सोते समय एक वृद्ध किसी युवा सहयोगी से कहने लगा- देखो! बरसात आ रही है क्या? युवक ने कमरे के अन्दर आये कुत्ते के शरीर पर हाथ फिरा कर कहा- नहीं। बरसात नहीं आ रही क्योंकि कुत्ता गीला नहीं है। पुनः वृद्ध ने कहा- जरा चिमनी बन्द कर दो। युवक का उत्तर था- आप चादर को मुँह पर खींच लो। वृद्ध व्यक्ति ने फिर कह दिया- दरवाजा बन्द कर दो। वह झल्ला उठा-दो काम मैंने कर लिये। अब तीसरा काम तुम कर लो। यह है, नीललेश्या की परिणति।
(३) कापोतलेश्या (तीव्र कषाय)- कृष्ण एवं नील से कुछ शुभ्र किन्तु अन्य लेश्याओं से मलिन चंचल परिणामों को कापोतलेश्या कहा है। उत्तराध्ययन-सूत्र के अनुसार - कापोतलेश्या वाला अत्यधिक हँसने वाला, दुष्ट वचन बोलने वाला, चोर, मत्सर स्वभाव वाला होता है।
शीघ्र रुष्ट होने वाला, आत्म-प्रशंसा और पर-निन्दा में तत्पर, अति शोकाकुल अथवा अति भयभीत होने वाला भी कापोतलेश्या युक्त होता है।
शीघ्र रुष्ट होने वाला बात-बात में चिड़चिड़ाने वाला अकारण ही झुंझलाता रहता है। एक आदमी से पड़ौसी ने कहा- 'भाई साहब! आम का टोकरा आया है।' रूक्ष स्वर में वह व्यक्ति बोला- 'मुझे क्या?' पड़ौसी ने पुनः कहा- 'आपके खेत से आया है।' चिढ़ गया वह व्यक्ति-'तो तुझे क्या?' बात करते ही काटने को दौड़े - की स्थिति में कापोतलेश्या वाला जीता रहता है। छोटी-छोटी बातों में चिढ़ जाता है, रुष्ट हो जाता है। चाय मिलने में पाँच मिनिट की देर हो गई कि रोष आ गया।
__आत्म-प्रशंसा और पर-निन्दा का व्यसनी होता है- कापोतलेश्या वाला व्यक्ति! अपनी प्रशंसा के फल बिखेरते रहना, अहंकारपूर्ण वचन वर्षा करते रहना तथा अन्य की आलोचना, दोष-दर्शन, दुर्गुणों को बोलना - कापोतलेश्या वाले का स्वभाव होता है। अकारण ही भयभीत रहता है। कभी व्याधि का डर, कभी वृद्धत्व की कल्पना, कभी मृत्यु की निकटता का भय। वह पापभीरु नहीं; किन्तु दुःखभीरु होता है। धर्मी व्यक्ति दुःखभीरु नहीं; पापभीरु होता है। वह पाप करने से घबराता है, व्याधि, वेदना या मृत्यु से नहीं। क्योंकि जो होना है, होगा। उससे भय का कोई अर्थ नहीं। जैसे मौत होनी है, होगी। उससे भय क्या? निश्चित है। देह जराजीर्ण होनी है, होगी। बुढ़ापा आना है, आयेगा ही। धर्म में प्रवेश के लिए अभय पहला चरण है। अभय का अर्थ हआ, जो नहीं होने वाला है, वह नहीं होगा; उसका तो भय करना क्या? जो होने वाला है, वह होगा; उसका भय करना क्या? १४. उत्तरा. अ. ३४/ गा. २५-२६
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