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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
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कषाय - नोकषाय मोहनीय कर्म-प्रकृतियों के बन्ध-स्थान
एक समय में जितने कर्मों के बन्ध होते हैं, उतने समूह को बन्धस्थान कहते हैं। किस गुण स्थान में कितनी कर्म-प्रकृतियाँ युगपत् बन्ध को प्राप्त होती हैं, निम्नलिखित हैं- ४३ बन्ध गुण कर्म-प्रकृतियाँ
कुल स्थान स्थान
संख्या १ १ सोलह कषाय, हास्य-रति (अथवा अरति शोक),
एकवेद, भय, जुगुप्सा २ २ सोलह कषाय, हास्य-रति (अथवा अरति शोक)
पुरुषवेद (या स्त्रीवेद), भय, जुगुप्सा ३ अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन (१२ कषाय), हास्य-रति
(अथवा शोक अरति) पुरुषवेद (अथवा स्त्रीवेद), भय, जुगुप्सा
१७
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१७
५ ५ प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन (८ कषाय), हास्य-रति (अथवा शोक
अरति)पुरुषवेद (अथवा स्त्रीवेद), भय, जुगुप्सा संज्वलन कषाय, हास्य-रति (या शोक अरति)
पुरुषवेद (या स्त्रीवेद), भय, जुगुप्सा
७ संज्वलन कषाय, हास्य-रति, पुरुषवेद (या स्त्रीवेद) भय, जुगुप्सा ८८
९ ९ (भाग-१) संज्वलन कषाय, एक वेद १० ९ (भाग-२) संज्वलन कषाय ११ ९ (भाग-३) संज्वलन मान, माया, लोभ १२ ९ (भाग-४) संज्वलन माया, लोभ १३ ९ (भाग-५) संज्वलन लोभ
प्रदेश-बन्ध जिस प्रकार आग में तपाये लोहे के गोले को पानी में डाल देने पर वह अपने निकटवर्ती जल को ग्रहण करता है, किन्तु दूरस्थ जल को ग्रहण नहीं करता; वैसे ही जीव जिन आकाश-प्रदेशों में स्थित होता है - उन्हीं आकाशप्रदेशों में रहने वाले कर्म-परमाणुओं को ग्रहण करता है।
जीव के द्वारा ग्रहण किये जाने वाले कर्म-परमाणुओं की कषाय एवं नोकषाय मोहनीय में विभाजन की प्रक्रिया को तालिका के माध्यम से स्पष्ट कर रहे हैं। ४३. पंचम कर्म ग्रन्थ गा. २४
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