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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
मनुष्यायु बन्ध हेतु : मन्द कषाय- 'स्थानांगसूत्र' में मनुष्य आयुबन्ध के निम्न कारण दिये गए हैं-२९
(१) प्रकृति भद्रता - सरलता (माया कषाय की मन्दता) (२) विनीतता - नम्रता (मान कषाय की अल्पता) (३) सहृदयता - दुःख में सहयोग (लोभ कषाय की न्यूनता) (४) पर-गुण सहिष्णुता, ईर्ष्या का अभाव ( मान व क्रोध की अल्पता)
'तत्त्वार्थसूत्र' में अल्पहिंसा, अल्पपरिग्रह, मृदुता और मान कषाय की मन्दता को मनुष्यायु - बन्ध का कारण निरूपित किया गया है। ३०
तत्त्वार्थटीका में निम्न कारण बताये हैं-३१
(१) भद्रता (२) मधुरता (३) कोमलता (४) वैराग्यवृत्ति (५) दान प्रवृत्ति (६) ईर्ष्या का अभाव (६) श्रेष्ठाचरण (७) अशुभ निवृत्ति (८) प्राणी हिंसा से विरति (९) लोभ की अल्पता (१०) वाक् शक्ति का सदुपयोग (११) कापोत-पीतलेश्या रूप शुभ भाव (१२) शुभ भावों में मरण।
किसी जंगल में दावानल सुलग उठा। एक सुरक्षित खुले स्थान पर सभी जानवर दौड़कर पहुँचने लगे। सुजातोरु नामक हाथी जिसने झाड़-झंखाड़ हटाकर उस भूमि को वनस्पति रहित किया था, वह भी पहुँचकर खड़ा हो गया। योग से कान में खुजली हुई। हाथी ने पाँव ऊँचा किया ही था कि खाली स्थान पर एक खरगोश आकर बैठ गया। हाथी का पाँव ऊपर का ऊपर रह गया। उस शशक के प्रति करुणा-भाव से तीन दिन पाँव नीचे नहीं रखा। अग्नि बुझी। सब चले गए। हाथी ने पाँव नीचे रखना चाहा - पर अकड़ने के कारण गिर पड़ा। दुस्सह वेदना भोगकर शान्त भाव से मृत्यु को प्राप्त हुआ और जन्मान्तर में महाराजा श्रेणिक का पुत्र मेघकुमार बना।
देवायु बंध हेतु : मन्दतम कषाय- 'स्थानांगसूत्र' में देवायु बन्ध के चार कारण दिये हैं-३२
(१) सराग संयम- सम्यग्दृष्टि मुनि साधना-काल में शुभ एवं शुद्ध भावों में रमण करता है। शुद्धभाव मुक्ति एवं शुभभाव देवगति का कारण है।
२९. ठाणं | स्था. ४ | उ. ४ / सू. ६३० ३०. तत्त्वार्थसूत्र/ अ. ६ / सू. १७-१८ ३१. मोक्षशास्त्र | अ. ६ / सू. १७ की टीका ३२. (अ) ठाणं स्था. ४/ उ. ४/ सू. ६३१ (ब) तत्त्वार्थसूत्र अ. ६/ सू. २०
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