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कषाय और कर्म
गति अपेक्षा आयु चार प्रकार की होती है- (१) नरकायु, (२) तिर्यंचायु (३) मनुष्यायु (४) देवायु। इन चारों में कषाय की भूमिका निम्नलिखित हैं
नरकायु बन्ध : तीव्रतम कषाय- स्थानांगसूत्रानुसार अति हिंसा, महापरिग्रह, पंचेन्द्रिय-वध, मांसाहार-नरकायु बन्ध के कारण हैं। २४ ये चारों प्रवृत्ति तीव्रतम कषाय के बिना संभव नहीं है।
'तत्त्वार्थसूत्र' की टीका में नरकायु बन्ध के कारण निम्न हैं-२५
(१) अति लोभ, (२) अति मान, (३) क्रूर परिणाम, (४) परस्त्री कामुक वृत्ति, (५) परधन हरण, (६) पाषाण-रेखा समान क्रोध, (७) दीर्घकालिक वैर, (८) अभक्ष्य आहार, (९) देव-गुरु-धर्म पर असत्य दोषारोपण, (१०) अतिरुदन, (११) कृष्ण-लेश्या, (१२) तीव्रतम कषाय परिणामों में मरण।
मम्मण सेठ ने अति लोभ के फलस्वरूप नरक आयु का बन्ध किया। तन्दुलिया मत्स्य अति भाव-हिंसा परिणामों से सातवीं नरक में जाता है। अति कामवासना से चक्रवर्ती की स्त्रीरत्न नियमा छठी नरक का बन्ध करती है। तीव्रतम कषाय, नरक आयु का बन्ध हेतु है।
तिर्यचायु बन्ध : तीव्रतर कषाय - 'स्थानांगसूत्र' में तिर्यंचायु बन्ध के कारण इस प्रकार दिये गए हैं-२६ (१) माया (निकृति) कषाय, (२) मिथ्या वचन, (३) झूठा माप-तौल, मिलावट, शोषण। 'तत्त्वार्थसूत्र' में माया-कषाय को तिर्यंचगति का कारण कहा गया है। २७
तत्त्वार्थ-टीका में निम्नलिखित कारण बताये गये हैं-२८ (१) दूसरे के उत्तम गुण को प्रकट नहीं करना, (२) स्वयं में गुण न होने पर भी उनके होने का दावा करना, (३) शब्द से, चेष्टा से मायाचरण करना, (४) कपट-कुटिल कर्म में तत्पर रहना, (५) गीली मिट्टी की रेखा सादृश क्रोध होना, (६) तीव्र कषाय रूप आर्तध्यान में मरण होना।
तिर्यंच आयु बन्ध हेतु माया-कषाय विशेष है। अपने लाभ और मान को प्रकट न होने देने के भाव से माया का आश्रय लिया जाता है। कई व्यक्ति किसी प्रसंग में जाने का मन न होने पर बहाना बना देते है। बहाना बनाना माया कषाय है। असत्य का आश्रय माया में विशेष रूप से लिया जाता है। २४. ठाणं स्थान ४ / उद्देश्क ४ / सू. ६२८ २७. तत्त्वार्थसूत्र/ अ. ६ / सू. १७ । २५. मोक्षशास्त्र अ. ६ / सू. १५ की टीका २८. मोक्षशास्त्र अ. ६ / सू. १६ की टीका । २६. ठाणं/ स्था. ४ / उ. ४ / सू. ६२९
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