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कषाय के भेद
पार्श्वनाथ प्रभु एवं कमठ का प्रसंग प्राप्त होता है। पार्श्वनाथ प्रभु के प्रति कमठ का वैर दस भव तक चलता रहा। १२ ।
पोतनपुर नगर के राजा अरविन्द थे। राज पुरोहित कमठ लघुभ्राता मरुभूति की पत्नी वसुन्धरा का रूप-लुब्ध बन व्यभिचारी बन गया। ज्ञात होने पर मरुभूति ने राजा से शिकायत की। कमठ को देश-निकाला दण्ड मिला। क्रुद्ध कमठ ने तापस-वेश ग्रहण किया। नगर के बाहर धूनी रमा कर बैठ गया। तपस्वी रूप में विख्यात कमठ को श्रद्धा से नमन करने हेतु मरुभूति अतीत को विस्मृत करके चला आया। कमठ ने पाँवों में झुकते ही मरुभूति के सिर पर शिलाखण्ड से प्रहार किया। मरुभूति तड़प-तड़प कर मरण-शरण हो गया।
__ यह वृतान्त ज्ञात होने पर राजा अरविन्द सांसारिक सम्बन्धों की स्वार्थपरता समझ वैराग्य-वासित हो गए। श्रमण जीवन अंगीकार किया। अवधिज्ञान प्राप्त हुआ। मरुभूति को हाथी रूप में देख उपदेश दिया। मरुभूति समता-साधना में स्थित हआ। कमठ की वैराग्नि प्रज्ज्वलित रही- अतः निरन्तर दस भव/जीवन तक वह मरुभूति के जीव को देखने मात्र से क्रोधित होता रहा तथा उन्हें मृत्यु के मुख में पहुँचाता रहा। दस भव निम्नोक्त हुए.. मरुभूति (पार्श्वनाथ)
कमठ
मारने का साधन १. मरुभूति
पत्थर २. सुजातोरु हाथी
कुक्कुट सर्प ३. सहस्रार (८वाँ) देवलोक नरक (५वाँ) ४. किरणवेग राजर्षि
सर्प अच्युत (१२वाँ) देवलोक नरक (५वाँ) ६. वज्रनाभ राजर्षि
भील
बाण ७. ग्रैवेयक देव
नरक (७वाँ) ८. सुवर्णबाहु चक्रवर्ती (मुनि) सिंह
आक्रमण प्राणत (१०वाँ) देवलोक १०. पार्श्वकुमार
तापस मर कर नासाग्र जल
मेघमाली बरसाने रूप उपसर्ग __ मरुभूति समता में स्थित रहते हुए पार्श्वनाथ तीर्थंकर हुए; किन्तु कमठ का वैर भाव दस भव तक चलता रहा। १२. श्री कल्पसूत्र/ भद्रबाहु स्वामी रचित
कमठ
दंश
दश
नरक
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