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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
थे। ज्ञान के अथाह सागर होने पर भी वीतरागता नहीं प्राप्त कर सके थे।
पन्द्रह सौ तापसों को श्रमण दीक्षा प्रदान कर गौतम गणधर भगवान् महावीर के चरणों में समुपस्थित हुए। नूतन मुनिवृन्द स्थान ग्रहण करने हेतु 'केवली पर्षदा' की ओर बढ़ चले। गौतम स्वामी ने उन्हें मधुर स्वर में कहा'अहो मुनियो! वह स्थान तुम्हारे लिए नहीं है।' महावीर प्रभु ने गौतम को सत्य वस्तु-स्थिति बताई- ‘गौतम! केवलियों की आशातना मत करो।' गौतम के नेत्र आश्चर्य से विस्फारित हो गए- 'प्रभो! अभी मैंने इन्हें दीक्षित किया और अभी ये सर्वज्ञ हो गए।' गौतम गणधर गंभीर हो गए। मन में हलचल हो गई। एक प्रश्न अधरों पर फूट पड़ा- 'प्रभो! मेरे हस्त-दीक्षित मुनि पूर्णता को उपलब्ध हो जाते हैं और मैं अभी अपूर्ण क्यों?' । ___भगवान् महावीर ने गौतम स्वामी की जिज्ञासा का स्पष्टीकरण देते हुए कहा- 'गौतम! तुम इसी क्षण कैवल्य-सूर्य को प्रकाशित कर सकते हो। मात्र मेरे प्रति राग (संज्वलन कषाय) के बादलों को चिदाकाश से बिखेर दो।'
संज्वलन कषाय गौतम स्वामी जैसे ज्ञानी के लिए बाधक बन गयावीतरागता प्राप्ति हेतु। ____संज्वलन कषाय का अधिकतम काल श्वेताम्बर परम्परानुसार पन्द्रह दिन एवं दिगम्बर परम्परानुसार ३५ अन्तर्मुहूर्त बताया गया है। पाक्षिक प्रतिक्रमण का विधान इसी हेतु से है। यद्यपि साधक को रात्रि एवं दिवस सम्बन्धी दोषों की आलोचना प्रतिदिन (प्रतिक्रमण) कर लेना चाहिए; नहीं तो पाक्षिक प्रतिक्रमण तो अवश्य ही करना चाहिए। जिससे प्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय न हो जाए।
कषाय के सोलह भेद'३५ (काल मर्यादा अपेक्षा तरतमता)
क्रोध अनन्तानुबन्धी- वर्षों न मिटने वाली पर्वत की दरार की भाँति (आजीवन) अप्रत्याख्यानी- गीली मिट्टी के सूखने के बाद बनी रेखा की तरह (दीर्घकालिक) प्रत्याख्यानावरण-बालू रेत में बनी रेखा जैसा (अल्पकालिक) संज्वलन- पानी पर खिंची लकीर के समान (अल्पतम-कालिक) १३४. (अ) पक्ख... (आचा./शीला./ अ. २/उ. १/ सू. १९०) (ब) विशेषा./गा. २९९२ १३५. जो अंतोमुहुत्तदीदमंतो... (क.चू./अ. ८/ गा. ८५/ सू. २१) १३६. प्रथम कर्मग्रन्थ।
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