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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
२. झंझा-तीव्र संक्लेश परिणाम को झंझा कहा गया है। ‘आचारांगसूत्र' में 'झंझा' शब्द का प्रयोग 'व्याकुलता' के अर्थ में हुआ है। ५० ।।
साहित्यकार रामचन्द्र शुक्ल ने क्रोध के अन्य रूप बताये हैं-५१
(अ) चिड़चिड़ाहट-क्रोध का एक सामान्य रूप है- चिड़चिड़ाहट। चित्त व्यग्र होने पर, कार्य में विघ्न उपस्थित होने पर, मनोनुकूल सुविधा प्राप्त न होने पर झल्लाना, चिड़चिड़ाना- क्रोध का रूप है।
(ब) अमर्ष-किसी अप्रिय स्थिति से न बच पाने पर क्षोभयुक्त, आवेगपूर्ण अनुभव अमर्ष है।
___ इसी प्रकार क्रोध के अन्य रूप दृष्टिगोचर होते हैं। कई लोग क्रोध में भोजन छोड़ देते हैं; कई क्रोध में अधिक भोजन कर लेते हैं। कई लोग क्रोधावेश में त्वरित गति से कार्य करते हैं, तो कई चुपचाप एक कोने में बैठ जाते हैं। कई क्रोध में बोलना छोड़ देते हैं, चुप्पी धारण कर लेते हैं, कई बड़बड़ाना प्रारम्भ कर देते हैं।
उदाहरण प्राप्त होता है- यूनान के दार्शनिक सुकरात जितने शान्त थे, पत्नी उतनी ही कर्कशा थी। प्रतिकूल संयोग को प्रभु का उपकार मान वे शान्ति से गृहस्थी की गाड़ी चला रहे थे।
___ एक दिन मित्रों ने घर चलने का अति आग्रह किया और मना करने के उपरान्त भी साथ हो लिये। शंकित मन से, भारी कदमों से सुकरात घर आए। पत्नी को परिस्थिति से अवगत किया और जलपान भेजने का आग्रह किया। स्वयं मित्रों के मध्य आ बैठे। बातचीत प्रारम्भ हो गई। पर शीघ्र ही वार्तालाप का क्रम टूट गया; क्योंकि कमरे के भीतर से बड़बड़ाने की ध्वनि सुनाई दे रही थी।
मित्र घबराए- 'भैया! यह क्या?' सुकरात मुस्कुराए- 'कुछ नहीं'। पुनः चर्चा का सूत्र जुड़ गया। इतने में पानी की बौछार हुई- सब भीग गए और चौंक कर दृष्टि उठाई! रसोईघर के द्वार पर घर की मालकिन बाल्टी लिए खड़ी थी। मेजबान मुस्कुराया- 'मित्रो! आश्चर्य जैसी क्या बात है? पहले बादल गरजते हैं और फिर बरसते हैं।'
___ क्रोध भाव एक है; किन्तु उसके रूप-स्वरूप, परिणतियाँ विभिन्न दिखाई देती हैं।
५०. आयारो/ अ. ३/उ. ३/ सू. ६९ ५१. चिन्तामणि| भाग-२/ पृ. १३९
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