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कषाय के भेद
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। यद्यपि प्रत्येक कर्म यदि फलाकांक्षा रहित अनासक्ति से किया जाए तो श्रेष्ठ ही है; किन्तु मानव ने इन जातियों में उच्च और नीच की अवधारणा कर ली। उच्च कहलाने वाली जाति में जन्म लेना अहंकार का कारण बनने लगा! इसी अहंकार के वशीभूत होकर कई अज्ञानी जीवों ने हीन अवस्था को आमन्त्रण दिया।
हरिकेश चाण्डाल ने पूर्वजन्म में ब्राह्मण जाति में जन्म लेकर जाति-मद से ऐसा कर्मसंचय किया कि वर्तमान भव में चाण्डाल शूद्र जाति में जन्म हुआ। किसी भी शक्ति का भेद कालान्तर में उस शक्ति से च्युत कर देता है। ६९
(ख) कुल-मद-कुल की व्यवस्था नैतिक मर्यादाओं के पालन हेतु हुई थी। कुल अपने-आप में न उच्च होता है, न नीच। पर जिस कुल में सुसंस्कार, सम्पन्नता, विशिष्टता होती है; जिस कुल में महान पुरुषों का जन्म होता हैवह कुल श्रेष्ठ कहलाता है। ऐसे कुल में जन्म मद का निमित्त बन जाता है, यदि विवेक ज्ञान न हो तो।
मरीचि उस समय अहंकार से नाचने लगा, जब भरत चक्रवर्ती ने उसे वन्दन कर कहा- 'तुम भविष्य में वासुदेव, चक्रवर्ती एवं तीर्थंकर - तीनों पद के भोक्ता बनोगे।' मरीचि विचार करने लगा - मेरे दादा तीर्थंकर, मेरे पिता चक्रवर्ती और मैं श्रेष्ठातिश्रेष्ठ तीन पदवी प्राप्त करूँगा। अहो! हमारा कुल कितना उत्तम है।' इस कुलमद के परिणामस्वरूप मरीचि को महावीर के भव में निम्न कुल में देवानन्दा की कुक्षि में अवतरित होना पड़ा। ७०
(ग) रूप-मद-शारीरिक वैभव मिलना अलग बात है और उस रूप की चकाचौंध में अन्धा न बनना अलग बात है। देह का लावण्य, सौन्दर्य बाह्यात्मा को मदोन्मत्त बना देता है और उस रूप की रौशनी में उसे सब सामान्य निम्न दिखाई देते हैं।
सनत्कुमार चक्रवर्ती " के रूप की प्रशंसा इन्द्र ने जब सभा में की; तब दो देव रूप-परिवर्तन कर धरा पर आ पहुँचे। सनत्कुमार स्नान हेतु समुपस्थित थे कि परिचारक ने कहा, 'प्रभो! ब्राह्मण-द्वय आपके दर्शनोत्सुक हैं।' 'आने दो' का आदेश प्राप्त होते ही दो ब्राह्मणों ने आँगन में प्रवेश लिया। सनत्कुमार की
६९. उत्तराध्ययनसूत्र ७०. श्री कल्पसूत्र | महावीर प्रभु के सत्ताइस भव ७१. योगशास्त्र | हेमचन्द्राचार्य
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