________________
कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
(ज) लाभ - मद - पुण्य योग जब प्रबल होता है, तब पग-पग पर सफलता की विजयमाला मिलती है। कई लब्धियाँ, ऋद्धियाँ, सिद्धियाँ चरण-चुम्बन करती हैं। तत्त्वज्ञान का अभाव अनेक बार ऐसी स्थिति में मदोन्मत्त बना देता है।
२८
सुभूम चक्रवर्ती ७५ षट्खण्डाधिपति थे । चक्रवर्ती पदभोक्ता, चौदह रत्नों के स्वामी - सुभूम को अतुल सम्पदा प्राप्त होने पर भी सन्तोष नहीं था । सप्तम खण्ड विजय की भावना बलवती बनने लगी । देव वाणी से इन्कार होने पर भी विजयोन्माद में कदम बढ़ चले । अथाह जलराशि पर तैरता देवाधिष्ठित जलयान अचानक एक देव के मन में विचार आया - यदि मैं कुछ क्षणों के लिए अपना स्थान छोड़ दूँ तो क्या हानि है ? यही विचार उन समस्त देवों के मन में उसी समय आया जिन्होंने जहाज संभाला हुआ था । देवों के जहाज से हटते ही वह जलयान सागर की अतल गहराई में जा पहुँचा और सातवें खण्ड की विजय का स्वप्न लिए सुभूम चक्रवर्ती अगली जीवन-यात्रा पर चल पड़ा।
-
(झ) ऐश्वर्य - मद - 'मैं अतुल वैभव सम्पन्न हूँ' ऐसा अभिमान ऐश्वर्य मद कहलाता है। भगवान् महावीर का नगर के बाहर पदार्पण हुआ था । उद्यानपालक ने नृपति को ज्ञापित किया ।
७६
राजा दशार्णभद्र ५ विशाल परिवार के साथ प्रभु दर्शनार्थ महल से चल पड़े। कितने हाथी, घोड़े, रथ, सेना, जनमेदिनी पृथ्वीपति दशार्णभद्र का सिर गर्व से उन्नत हो गया। मस्तिष्क में एक विचार उमड़ने लगा - 'मेरे जैसे ऐश्वर्ययुक्त होकर प्रभु वन्दना के लिए कौन जाता होगा ? '
-
साथ ही गर्वोन्नत राजा की आँखें
देवराज इन्द्र ने दशार्णभद्र का विशाल जुलूस देखा; पर शिर भी देखा । तत्काल इन्द्र अपनी व्यवस्था लेकर चल पड़े। आकाश-मण्डल से आते इन्द्र के परिवार एवं व्यवस्था पर पड़ी। विस्मय - विमुग्ध हो गए- “कैसा अद्भुत विमान! हज़ारों हाथी ! एक-एक ऐरावत हाथी की आठ-आठ सूँड ! प्रत्येक सूँड पर विराट् कमल ! कमल की कर्णिकाओं पर नृत्य करती अप्सराएँ!” दशार्णभद्र का चेहरा निस्तेज हो गया । अहंकार बर्फ की तरह गलने लगा। अभिमान के बादल बिखर गए। ऐश्वर्य का नशा उतर गया । भौतिकता का रंग उड़ गया और संयम रंग में मन रंग गया। प्रभु चरणों में दीक्षित हुए।
७५. कथा-संग्रह ७६. सामायिक सूत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org