Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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भाग-14
विषय-सूची
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पृष्ठ विषय मूल सूत्रोंके विवरण करने की प्रतिज्ञा
आठ करणोंका नामोल्लेख करके किस कर्म में उपशामनाके भेद और लक्षण
कहाँ तक कौन करण होता है इसका अकरणोपशामनाका विवेचन
निर्देश करणोपशामनाका विवेचन
व्याधात और अव्याघातके भेदसे उपशमनाके देशकरणोपशामनाका विवेचन
दो भेदोंकी अपेक्षा कथन सर्वकरणोपशामनाका विवेचन
प्रतिपातके दो भेदोंकी अपेक्षा कथन ४५ किस कर्मको उपशामना होती है इसका निर्देश १० प्रकृतमें उपशामनासे पतनके कारणका निर्देश ४७ :प्रकृतमें दर्शन मोहकी उपशामना विवक्षित नहीं १० पतन होनेपर सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानमें होनेअनन्तानुबन्धीकी करणोउपशामना होती ही
वाले कार्यों में तीनों लोभोंकी अपेक्षा मीमांसा
४८ नहीं बारह कषाय और नोकषायोंकी उपशामनाका
बादरसाम्पराय गुणस्थानमें होनेवाले कार्योंका क्रमनिर्देश
निर्देश कृष्टिगत मात्र लोभसंज्वलनकी उपशामनाका
उसमें सर्वप्रथम अनानुपूर्वी संक्रमकी सूचना
तथा तीनों लोभोंसम्बन्धी अन्य कार्योका निर्देश
निर्देश यहाँ होनेवाले क्रमसे स्थितिबन्धका प्रदेशपुंजकी उपशामना विधिका निर्देश
निर्देश उदयावलि और वन्धावलिको छोड़कर शेष सब
लोभवेदक कालके समाप्त होनेपर तीन मायाके स्थितियोंकी उपशामनाका निर्देश १५ आलम्बनसे विशेष निर्देश अनुभागमें सब स्पर्धकों और सब वर्गणाओंकी इसके तोन लोभोंका जो गुणश्रेणिनिक्षेप होता उपशामनाका निर्देश
१६ है उसके विषयमें विशेष निर्देश प्रदेशसंक्रमके सम्बन्धमें विशेष निर्देश
एतद्विषयक शेष कर्मोके विषयमें निर्देश स्थितिसंक्रमके
इसके संक्रमके विषयमें विशेष निर्देश , "
यहाँ स्थितिबन्धके विषयमें निर्देश अनुभागसंक्रमके ,
मायावेदकके अन्तिम समयमें स्थितिबन्धका प्रदेश, स्थिति और अनुभाग उदीरणाके विषयमें
निर्देश विशेष विचार
माया वेदककालके समाप्त होनेपर मानवेदक नपंसकवेदकी उपशामनामें जो कार्य होते हैं
कालके प्रथम समयमें कार्योंका निर्देश उनका निर्देश
२३ इसके प्रथम समयमें नौ प्रकारका कृष्टिवेदनकालमें बन्ध नहीं होता इसका निर्देश
संक्रमका निर्देश स्त्रीवेदकी उपशामनामें जो कार्य होते हैं इसी समय होनेवाले स्थितिबन्धके विषय में उनका निर्देश
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