________________
[* हे अज्ञान से ग्रस्त जीवों उठो । जागो और ।
श्रेष्ठजनों के पास जाकर जान प्राप्त करो। * आत्मज्ञान का मार्ग तलवार की तीक्ष्णधार के
समान दुर्गम होता है। * जो विवेकशील प्राणी बुद्धि सारथि से युक्त।
और मन को संयत रखने वाला होता है वह जीवन की यात्रा को समाप्त कर व्यापक परमात्म पर को प्राप्त कर लेता है।
- जो कर्म और जान को एक साथ जानता है,
दोनों मामा के सामंजस्य को समझता है वहीं कर्म द्वारा अपनी आत्मा को नीचे गिराने वाले तत्वों पर विजय पाकर अपने शाश्वत अमृत स्वरूप का अनुभव करता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org