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ज्यों था त्यों ठहराया
हिंदू घर में पैदा होने से कोई हिंदू नहीं; मुसलमान घर में पैदा होने से कोई मुसलमान नहीं। जन्म से धर्म का कोई संबंध नहीं। हमने बहुत संबंध जोड़ रखा है। इस गलत संबंध ने, इस नाजायज संबंध ने हमारी ना मालूम कितनी मुसीबत कर दी है! हमारी जीवन की बहुत-सी जड़ता इसी नाजायज संबंध के कारण हो गई है। अब यह हो जाता है कि एक व्यक्ति जैन घर में पैदा हुआ, तो उसके मन में अगर मीरा जैसी भक्ति उठे, तो क्या करें? तड़फेगा। कृष्ण को कहां पाए! और महावीर के पास तुम नाच नहीं सकते। जंचेगी नहीं बात। महावीर खड़े हैं बिलकुल नग्न। इनके पास तुम नाचोगे--शोभा नहीं देगा। तालमेल नहीं बैठेगा। उसके लिए तो कृष्ण ही चाहिए। वही रूप चाहिए। वही शृंगार; वही मोर-मुकुट; वही परिधान; वही नृत्य की मुद्रा; वही हाथ में बांसुरी--लगती है यूं कि अब बजी, तब बजी! वही नाचते हुए कृष्ण की प्रतिमा हो, तो तुम भी नाच सकोगे-- तालमेल होगा। महावीर की खड़ी हुई नग्न प्रतिमा के पास क्या नाचोगे? वहां तो सब नृत्य बंद हो गया; सब थिर हो गया है। बुद्ध की प्रतिमा के पास नाचोगे; जंचेगा नहीं। वहां तो चुप हो जाना। वहां गीत भी नहीं गाना। वहां मौन-सन्नाटा चाहिए। मगर कोई गा कर भी सन्नाटे में उतरता है। कोई नाच कर भी सन्नाटे में उतरता है। कोई नाचते-नाचते खो जाता है नाच में। मिट जाता है। गल जाता है। पिघल जाता है। और उसी पिघलाव में, जब अहंकार नहीं होता--तो ज्यूं था त्यूं ठहराया! अब तुम्हारी मौज। मेरे इस मंदिर के द्वार अनेक हैं। कोई नाचता हआ आए, तो उसके लिए मैंने कृष्ण की मूर्ति सजा रखी है। और किसी को नाच न जंचता हो, चुप बैठना हो, तो उसके लिए मैंने बुद्ध की मूर्ति बिठा रखी है। जिसकी जैसी रुचि हो। पहले अपनी रुचि को पहचानो। पहले अपने दिल को पहचानो; अपने दिल को टटोलो--और उसी आधार पर चलना, वहीं से संकेत लेना, तो यह दुविधा खड़ी नहीं होगी, तो यह दुई खड़ी नहीं होगी। ज्यूं मुख एक देखि दुई दर्पन! दर्पणों में मत देखो। आंख बंद करो और अपने भीतर के रुझान को पहचानो कि मेरा रुझान क्या है। और कठिनाई नहीं होगी। अगर तुम दूसरों की सुनोगे, तो कठिनाई में पड़ोगे, क्योंकि दूसरे अपनी सुनाएंगे। इसलिए मैं निरंतर अनेक जीवन-दृष्टियों पर बोल रहा हूं। कहीं ऐसा न हो कि कोई जीवन-दृष्टि तुमसे अपरिचित रह जाए। तुम्हें परिचित करा देता हूं। और निरंतर यह घटना घटती है: जब मीरा पर बोला हूं, तो किसी के हृदय की घंटियां बजने लगीं। और जब बुद्ध पर बोला हूं, तो किसी के हृदय की गूंज उठी। और मैंने यह पाया है कि जिसको मीरा को सुन कर गूंजा था हृदय, उसको बुद्ध को सुन कर नहीं गूंजा। और जिसको बुद्ध को सुन कर हृदय आंदोलित हुआ, वह मीरा से अप्रभावित रह गया। जो मीरा को सुन
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