________________
से उसे पुन स्वर्ग भेजा । पर इस बार मे भी इन्द्र ने उसे फिर नीचे ढकेल दिया । इस प्रकार दो-तीन वार के कठिन परिश्रम से त्रिशकु के मुह से लार टपक पड़ी जो कर्मनाशा के रूप मे वह चली। पहले इसका नाम सुकर्मनाशा था जो घिसते-घिसते कर्मनाशा रह गया है । लोगो का विश्वास है कि इसमे स्नान करने से सारे सुकर्म धुप जाते है । अत आज भी कोई उसमे स्नान नहीं करना चाहता । आस-पास की भूमि भी अनुपजाऊ रूप मे पडी है । क्योकि इसके पानी से खेती भी नहीं होती। यह एक पौराणिक घटना है । इसे खूब रूप-रग भी दिया गया है । पर न जाने इसमे सत्याश है या नहीं ? आज के वैज्ञानिक मस्तिष्क ने यहाँ इतने नलकूप सुलभ कर दिए है कि जिनसे वह भूमि अन्न उगलने लगी है । ज्यो-ज्यो शिक्षा का प्रसार वढ रहा है, त्यो त्यो लोग उसमे नहाने से सुकर्म के नाश होने की बात भूलते जा रहे है।
प्रवचन की यहाँ अच्छी प्रतित्रिया हुई । अनेक लोग प्रवेशक अणुवती बने । कुछ लोगो ने शराव तथा मास का परित्याग किया।