Book Title: Jan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Meghraj Sanchiyalal Nahta

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Page 11
________________ वह पूरी होनी कठिन है सो है ही बल्कि कही-कही तो उल्टी झिडक भी सुनने को मिल जाती है । पर गावो मे ऐसी स्थिति नही है । यद्यपि कुछ ग्रामीण भी मुक्त दाता नहीं होते पर अधिकतर ग्रामीण अपने अतिथि को खाली हाथ नहीं लौटने देते। एक स्थान पर सडक से थोड़ी दूर भट्टी का धुआँ देखकर हम लोग ईक्षु रस लाने के लिए गए तो बीच में एक नालापा गया। पानी मे हम लोग चल नहीं सकते, अत वापिस मुडने लगे। खेत का मालिक कहने लगा-चावा 'मुड क्यो रहे है आइए चाहिए जितना रस ले जाइए। हमने कहा-भैया हम लोग पानी मे नही चल सकते अत वापिस जा रहे है । पास मे ही एक मुसलमान भाई खडा था कहने लगा-आप पानी मे नही चले तो मेरी पीठ पर बैठ जाइए। मैं आपको उस पार पहुंचा दूंगा। ___हमने उसे समझाया-यह तो एक ही बात हुई भैया | चाहे खुद पानी मे चलो या दूसरे के कधो पर बैठो । जाति, धर्म और प्रान्त से परे मानवता का वह एक ऐसा अनुपम उदाहरण था जो सदा स्मृति को झकझोरता रहेगा । यद्यपि अपनी मर्यादा के अनुसार हम वहाँ ईक्षु रस तो नहीं ले सके, पर वहाँ जो प्रेम-रस मिला वह क्या कम मूल्यवान था? ____ मैयदराजा" मे हम लोग ज्वालाप्रसादजी जालान के मकान मे ठहरे थे । ११ मील का लम्वा विहार होने के कारण विलम्व काफी हो चुका था । अत आहार से निवृत्त होने तक वारह वजने मे केवल पाच मिनट शेष रह रहे थे । इधर प्रवचन का समय वारह बजे का रखा गया था। वाहर काफी लोग जमा हो गए अत शास्त्रीजी आए और निवेदन किया"प्रवचन प्रारभ हो जाए तो अच्छा रहे।" प्राचार्यश्री ने उपस्थित साधुनो से पूछा- क्या आहार कर लिया ?

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