Book Title: Jan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Meghraj Sanchiyalal Nahta

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Page 12
________________ हमने निवेदन किया-अभी तक तो आहार का विभाग ही नहीं हुआ। आचार्य श्री ने कहा-"तो फिर मैं ही चलता हूँ।" आचार्य श्री अभी आहार करके उठे ही थे कि विना विश्राम किए ही प्रवचन स्थल पर पधार गए । यहाँ एक कालेज है, अत प्रवचन मे छात्रो की उपस्थिति काफी थी। प्रिंसिपल भी प्रवचन सुनने के लिए आया था । ग्रामीणो की सख्या भी कम नही थी। कुछ ग्रामीण तो दो-दो तीनतीन मील से चलकर आए थे । सचमुच उनमे बडी भारी जिज्ञासा के दर्शन हो रहे थे । प्रवचन के बाद सभी विद्यार्थियो ने मास भक्षण व नशा नहीं करने की प्रतिज्ञा ली। यहाँ लोगो मे एक यह जिज्ञासा भी है कि जैन धर्म के क्या-क्या नियम है ? क्या हम लोग भी जैन बन सकते है ? आचार्य श्री ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए सायकालीन प्रवचन मे कहा—जैन धर्म का पालन करने के लिए किसी जाति, सम्प्रदाय या देश का बन्धन नही है। कोई भी मनुष्य जो सद्गुरु तथा सद्धर्म मे आस्था रखता है वह जैन बन सकता है । बाहरी रूप मे जैन लोगो के लिए मास भोजन तथा मदिरापान का निषेध है । कर्मनागा नदी के बारे मे भी यहाँ एक बडी रोचक पौराणिक जनश्रुत चली आ रही है । आचार्य श्री ने जैसा कि वहाँ सुना था उसका इतिहास बताते हुए कहा-पौराणिक घटना के अनुसार कहते है–त्रिशंकु ने सदेह स्वर्ग जाने के लिए विश्वामित्र ऋषि की घोर उपासना की थी। ऋषि उससे प्रसन्न हो गए और उसे तीर पर बिठाकर सदेह स्वर्ग को ओर भेज दिया। पर उसे सदेह स्वर्ग आते देखकर इन्द्र वडा चिंतित हुआ । यह स्वर्ग-परम्परा के लिए नई वात थी । अत' उसने त्रिशकु को वापिस ढकेल दिया। वह ऋषि के पास आया। ऋषि ने अपने योग वल

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