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मज्झिमिके।" अर्थात् भगवान महावीर के लिए ८४ वें वर्ष में मध्यमिका में सालिमालिनि । डा० जायसवाल ने इसका उत्कीर्ण काल ३७४ ई० पूर्व माना है।' मथुरा के कंकाली टीले की खुदाइयों में अनेक ऐसे शिलापट्ट मिले हैं, जो ईस्वी पूर्व प्रथम शती के हैं। जहां तक मूर्तियों का सम्बन्ध है वह सबसे प्राचीन ५३ ई० पूर्व है, जो कनिष्क के राज्य काल में रची गई थी। यह मथुरा की खुदाइयों में प्राप्त हुई है । जैन स्तूप और मूर्तियाँ भगवान पार्श्वनाथ के समय में ही बनने लगी थीं। मोहनजोदड़ो की खुदाइयों से तो अब मूर्तिकला का इतिहास बहुत पीछे तक चला जाता है। मोहनजोदड़ो की मूर्तियों में से एक पर डा० प्राणनाथ ने 'श्रीजिनाय नमः' पढ़ा है ।
पुरातत्व के अतिरिक्त प्राचीन ग्रथ भी महावीर के पुनीत अस्तित्व को प्रमाणित करने में सहायक हैं। ऋग्वेद और यजर्वेद में महावीर का उल्लेख है । मज्झिमनिकाय, न्यायबिन्दु, अंगुत्तरनिकाय, संयुक्तनिकाय, और समागम सुत्त आदि बौद्ध ग्रन्थों में महावीर की प्रशंसा की गई है । षट्खण्डागम .. सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, सूत्रकृतांग सूत्र, जयधवल और नन्दी सूत्र आदि प्राचीन जैन सूत्र ग्रंथों में महावीर की वन्दना में अनेक पद्यो का निर्माण हुआ है। महावीर की सबसे प्राचीन स्तुति दूसरे अंग सूत्रकृतांग में उपलब्ध है । इसके पश्चात् प्राचार्य समन्तभद्र की वीर स्तुति हृदयग्राही है। उसके बाद तो सस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दी में रचा गया 'वीर' परक जैन साहित्य इतना अधिक है कि 'महावीर और उनकी भक्ति' लेकर एक शोध प्रबन्ध ही लिखा जा सकता है। महावीर केवल जैन समाज के ही नहीं, अपितु समूची भारतीय चेतना के प्रेरणा सूत्र रहे हैं । भारतीय संस्कृति की पावनता महावीर की देन है ।
जैन पागम सूत्रों में महावीर का जीवन चरित्र बहुत कुछ सुरक्षित है। उनमें भी पंचमांग भगवती या 'विवाह प्रज्ञप्ति' अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उसमें भगवान् महावीर के जीवन से सम्बन्धित प्रचुर सामग्री संकलित है । विशेषता है कि गोशालक का वर्णन करते हुए भगवान ने अपने मुह से अपनी प्रात्म कथा कही है। इसी अग में भगवान के समकालीन अनेक व्यक्तियों का वर्णन है ।
१. जर्नल आफ दी बिहार एण्ड मोड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, भाग १६ पृ० १६७ २. मदनमोहन नागर, मथुरा का जैन स्तूप और मूर्तियां, प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० २८० । ३. इसकी तुलना पब्बज्जा-सुत्त [सुत्तनिपात] में वरिणत बुद्ध की प्रात्मकथा से की जा
सकती है।
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