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धर्मपचीसी, अध्यात्मपंचासिका, १०८ नामों की गुणमाला, दशस्थानचौबीसी और छहढाला (सद्यः प्राप्त) भी उन्हीं की रचनायें हैं। उनका समूचा साहित्य भाव और भाषा दोनों ही दृष्टियों से खरा है।
द्रोणपुरी के शास्त्र भंडार में कवि विद्यासागर के हस्तलिखित ग्रन्थों का पता लगा है। विद्यासागर कारंजा के रहने वाले थे। उनके पिता का नाम राखू साह था। वे बघेरवाल जाति में उत्पन्न हुए थे। उनकी रचनाए भक्तहृदय की प्रतीक हैं। उन्होंने सोलह स्वप्न-छप्पय, जिन-जन्म-महोत्सव षट्पद, सप्तव्यसन सवैया, दर्शनाष्टक, विषापहार छप्पय और भूपाल स्तोत्र छप्पय का निर्माण किया था । विनयविजय साधु थे। उनके गुरु का नाम कीर्तिविजय उपाध्याय था। विनय विजय यशोविजय के समकालीन थे। दोनों ने साथ रहकर ही काशी में विद्याध्ययन किया था। गुजराती साहित्य को इनकी देन बहुत बड़ी है । हिन्दी में लिखा हुआ उनका 'विनयविलास' उपलब्ध है । उसके पद संतकाव्यधारा के प्रतीक हैं । लक्ष्मीबल्लभ (वि० सं० १८वीं शती का दूसरा पद) उपाध्याय लक्ष्मीकीति के शिष्य थे। वे बनारस के रहने वाले थे। वे विद्वान थे और कवि भी। उनकी हिन्दी कृतियों के नाम ये हैं-चौबीस स्तवन, महावीर गौतम स्वामी छद, दूहा बावनी, सवैया बावनी, नेमि राजुल बारहमासा, भावना विलास, चेतना बत्तीसी, उपदेश बत्तीसी और छप्पय बावनी । सभी जैन भक्ति से सम्बन्धित हैं।
विनोदीलाल (वि० सं० १७५०) शाहजहाँपुर के रहनेवाले थे। उनका जन्म अग्रवाल वंश और गर्ग गोत्र में हुआ था। वे अपनी सरस और प्रसादगुण युक्त रचनाप्रो के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होने चौबीस तीर्थङ्करों की भक्ति में अनेक सवैयों का निर्माण किया है । वे नेमीश्वर के परमभक्त थे । विवाह द्वार से लौटते नेमीश्वर और विलाप करतो राजुल, उन्हें बहुत ही पसन्द हैं । उनका लिखा हुआ नेमि-राजुलबारहमासा, विरहकाव्य परम्परा की एक अमर कृति है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने नेमि व्याह, राजुल पच्चीसी, नेमजी रेखता, प्रभात-जयमाल, चतुर्विशंति जिन स्तवन सवैया और फूलमाल पच्चीसी की रचना की थी। विवाह के लिए सजे हुए नेमीश्वर का एक चित्र देखिये:
"मौर धरो सिर दूलह के कर कंकण बांध दई कस डोरी। कुण्डल कानन में झलके प्रति भाल में लाल विराजत रोरी। मोतिन की लड़ शोभित है छबि देखि लजै बनिता सब गोरी। लाल विनोदी के साहिब के मुख देखन को दुनियां उठि दौरी।।"
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