________________
AL
कवि बनारसीदास की
भक्ति-साधना
बनारसीदास सत्तरहवीं शताब्दी के एक सामर्थ्यवान कवि थे। उन्हे कविप्रतिभा जन्म से ही प्राप्त हुई थी। उन्होंने १५ वर्ष की आयु में 'नवरस रचना' नाम के ग्रन्थ का प्रणयन किया था। आज वह रचना उपलब्ध नहीं है। बनारसीदास ने उसे स्वयं गोमती के खर प्रवाह में बहा दिया था। जब उन्होंने ऐसा किया, मित्रगण हा-हा करते रह गये ।' उसमें 'विसेस आसिखी का बरनन' था। और अब बनारसीदास ने भानुचन्द्र नाम के साधु से शिक्षा लेना प्रारम्भ किया था, जिसके परिणामस्वरूप उनका रूप बदल चुका था । वे उस 'नवरस रचना' को अपने ऊपर एक कलंक मान रहे थे, फिर तो जल-मग्नता के रूप में उसकी परिणति होनी ही थी। इस कृति में एक हजार दोहा-चौपाई थे। कोई मामूली रचना न थी । इससे सिद्ध है कि प्रणेता भले ही किशोर बालक हो, किन्तु वह महान् कवित्व शक्ति का धनी था।
१. अर्घकथानक, नाथूराम प्रेमी सम्पादित, सशोधित सस्करण, पद्य २६७-६८, पृष्ठ
२. 'तामैं नवरस-रचना लिखी । पं विसेस बरनन मासिखी' वही, पद्य १७६ वाँ।
PRASTROPRApare
PRAKATED
HAR
SESSE
355555SK११07जककककक