Book Title: Jain Shodh aur  Samiksha
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 193
________________ जनसाधारण तो लाभान्वित होता ही था, विद्वान् भीर मुनियों की खोजें भी उन्हीं पर आधारित थीं । कवि ठकुरसी ने चम्पावती के पार्श्व जिन मन्दिर में बैठकर ही अनेक काव्यों का निर्माण किया था। चम्पावती धन-धान्य से पूर्ण नगरी थी । उसके वैभव का वर्णन 'अन्तगडदसाथों में किया गया है । वहाँ का जैन साध्वी विद्यालय प्रसिद्ध था । इसी विद्यालय में महाराज श्रेणिक की पत्नी काली और सुकाली ने जिन दीक्षा लेकर अध्ययन किया था । इसकी प्राचार्या 'अज्जा - चन्दना' थी । ब्रह्म श्रजित ( १६ वीं शती) ने भडौंच के जैन मन्दिर के सरस्वती भण्डार में रहकर ही संस्कृत में 'हनुमच्चरित्र' की रचना की थी । इसमें २००० श्लोक हैं । भडौंच भी व्यापारिक केन्द्र होने के कारण एक समृद्धिशाली नगर था । इसी भाँति कुशललाभ ( वि० स० १६१६) ने जैसलमेर के रावल हरराज के प्रसिद्ध जैन मन्दिर में बैठकर 'पूज्यबाहणगीतम्' श्रादि भक्ति परक मुक्तक काव्यों का निर्माण किया था । जैसलमेर भारत का प्रमुख शिक्षा केन्द्र था । afa बनारसीदास के 'अर्धकथानक' से स्पष्ट है कि उस समय जौनपुर जैसे समृद्धिशाली नगर में भी कोई विशाल जैन विद्यालय नहीं था । उनके पिता खड्गसेन ने एक चटशाला में शिक्षा पाई थी । बनारसीदास भी उसी में पढ़े थे । उसके मुख्य विषय अक्षर ज्ञान और गणित थे । और अधिक शिक्षा लेने के लिए बनारसीदास को पं० देवदत्त के पास भेजा गया। इन पंडितो के घर हायर सेकेण्डरी स्कूल का काम करते थे । प० देवदत्त के गृह स्कूल के मुख्य विषय कोष, ज्योतिष, साहित्य और धर्म के साथ-साथ कोकशास्त्र भी था । इससे प्रतीत होता है कि अनिवार्य विषयों मे कोकणास्त्र की गणना थी। इसके अध्ययन से बालक मानव की मूल और प्रमुख मनोवृत्ति को सही रूप में समझ पाता था । बनारसीदास प्रासिखबाज बने थे, वह कोकशास्त्र का नहीं, अपितु उनकी संगति का प्रभाव था । किसी भी विषय की सही जानकारी, जीवन को सही मोड़ देती है, गलत नही । उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि पं० देवदत्त की शिक्षा भी कॉलिज स्तर की नहीं थी । बनारसीदास को पंडित बनाने का श्रेय उस 'सैली' को है, जिसके वे स्थायी सदस्य थे । 'सैली' का अर्थ है 'गोष्ठी' । प्रागरे में एक ऐसी गोष्ठी थी, जिसमें निरन्तर प्राध्यात्मिक चर्चा हुआ करती थी । इस चर्चा को सुष्ठु रूप देने के लए, गोष्ठी के सदस्य अपने व्यापारिक कृत्यों को छोड़कर भी अध्यात्म संबंधी ग्रन्थों का अध्ययन करते थे । बनारसीदास और उनके साथियों ने पहले समयसार 46.46.45.45.5555. १५१. फफफफफ

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