Book Title: Jain Shodh aur  Samiksha
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 219
________________ " भी 'शांति पाठ भी किये जाते हैं । वे मंत्र गमित होते हैं। प्रतेक दिन विधिवत् उनका पाठ होता है। भाज उनका प्रचलन है। प्रति वर्ष अनेक स्थानों पर उनके पाठ का आयोजन किया जाता है। इन मंत्र-यंत्रों में इहलौकिक शान्ति की अमोध शक्ति मानी गई है, किन्तु उनका मुख्य उद्देश्य पारलौकिक शाश्वत शान्ति ही है। उनका मूल स्वर 'आध्यात्मिक' है 'भौतिक' नहीं। यह ही कारण है कि उनमें ब्रज्रयानी तान्त्रिक सम्प्रदाय की भाँति व्यभिचार, मदिरा और मांस वाली बात नहीं पनप सकी । जैन देवियाँ मन्त्र की शक्तिरूपा थीं। उन्हें मन्त्र के बल पर ही साधा जा सकता था । किन्तु ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन मन्त्रों के साथ नीच कुलोत्पन्न कन्याओं के सेवन की बात चली हो । ऐसा भी नहीं हुआ कि भाद्रपद की प्रमावस की रात में एक सौ सोलह कुमारी, सुन्दरी कन्याओंों की बलि से वे यत्किञ्चित् भी प्रसन्न हुई हों । वे कराला थीं, किन्तु उनकी करालता व्यभिचार या मदिरा-मांस से तृप्त नहीं होती थी । सतगुरणों का प्रदर्शन ही उन्हें सन्तुष्ट बना सकता था। इसी भांति जैन साधु मन्त्र विद्या के पारंगत विद्वान् थे, किन्तु उन्होंने राम सम्बन्धी पदार्थों में उनका कभी उपयोग नहीं किया । जैन मन्त्र सांसारिक वैभवों के देने में सामर्थ्यवान होते हुए भी वीतरागी बने रहे । वीतरागता ही शान्ति है । उसका जैसा शानदार समर्थन जैन मन्त्र कर सके, अन्य नहीं । जैन भक्ति काव्य और मन्त्रों की सबसे बड़ी विशेषता है, उनकी शान्तिपरकता । कुत्सित परिस्थितियों और संगतियों में भी वे शान्तरस से दूर नहीं हटे । उन्होंने कभी भी अपनी प्रोट में शृंगारिक प्रवृत्तियों को प्रश्रय नहीं दिया । दाम्पत्य रति - मूला भगवद्भक्ति बुरी नहीं है । यह भी भक्ति की एक विधा है । जैन काव्यो के 'आध्यात्मिक विवाह' इसी कोटि में प्राते हैं । नेमीश्वर और राजुल को लेकर शतशः काव्यों का निर्माण हुआ। वे सभी सात्त्विकी भक्ति के निदर्शन हैं । उनमें कहीं भी जगन्माताओंों की सुहागरातों का नग्न विवेचन नहीं है। जिसे मां कहा, उसके अ ंग-प्रत्यंग में मादकता का रंग भरना उपयुक्त नहीं है । इससे मां का भाव लुप्त होता है और सुन्दरी नवयौवना नायिका का रूप उभरता है । घनाश्लेष में श्राबद्ध दम्पति भले ही दिव्यलोक-वासी हों, पाठक या दर्शक में पवित्रता नहीं भर सकते । भगवान् पति की भारती के लिए भगवती पत्नी का गूठों पर खड़ा होना ठीक है, किन्तु साथ ही पीनस्तनों के कारण उनके हाथ की पूजा - थाली के पुष्पों का बिखर जाना कहां तक भक्ति परक 55555555X தக்க்க்த்த்த்து

Loading...

Page Navigation
1 ... 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246