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प्रभावित है । पुष्पदन्त के महापुराण का डॉ० पी० एल० वैद्य ने सम्पादन किया हैं। उनकी मान्यता है कि महाकाव्यों में वह एक उत्तमकोटि का ग्रंथ है। 'भविस
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कहा' की खोज का श्रेय जर्मन के प्रसिद्ध विद्वान प्रो० जेकोबी को है। उन्होंने पनी भारत यात्रा के समय इस काव्य को अहमदाबाद से १६१४ में प्राप्त किया था । यह सबसे पहले श्री सी० डी० दलाल और पी० डी० गुणं के सम्पादन में, गायकवाड़ भोरियण्टल सीरीज, बड़ौदा से सन् १९२३ में प्रकाशित. हुप्रा जैकोबी ने भाषा की दृष्टि से और दलाल ने काव्यस्व की दृष्टि से इसे समूचे मध्ययुगीन भारतीय साहित्य की महत्वपूर्ण कृति कहा है । डा० विष्टरनित्स ने लिखा है कि इसकी कथा में थोड़े में अधिक कहने का गुरण कूट-कूटकर भरा है । कार्यान्विति श्रादि से अन्त तक बराबर बनी हुई है । हायकुमारचरिउ की भूमिका में डा० हीरालाल जैन ने उसे उत्तम कोटि का प्रबन्ध काव्य प्रमाणित किया है। 3 सधारु के 'प्रद्युम्नचरित्र' के 'प्राक्कथन' में डा० माताप्रसाद गुप्त ने उसे एक उज्ज्वल तथा मूल्यवान रत्न माना है । भूधरदास के पार्श्वपुराण को प्रसिद्ध पं० नाथूराम प्रेमी ने मौलिकता. सौदर्य तथा प्रसादगुरण से युक्त कहा है।" लालचन्द्र लब्धोदय के पद्मिनी चरित्र और रामचन्द्र के सीताचरित्र को पाण्डुलिपियों के रूप में मैने पढ़ा है और मैं उन्हें इस युग के किसी प्रबन्ध काव्य से निम्न कोटि का नहीं मानता । इनके अतिरिक्त अपभ्रंश और हिन्दी के नेमिनाथ-राजुल से सम्बन्धित खण्डकाव्य हैं। उनका काव्य- सौदर्य अनूठा है । मैंने अपने ग्रंथ 'जैन हिन्दी भक्ति काव्य और कवि में यथा स्थान उनका विवेचन किया है ।
इन विविध काव्यों में युद्ध है, प्रेम है, भक्ति है, प्रकृति के सजीव और स्वाभाविक चित्र है । संवाद - सौष्ठव की अनुपम छटा है । भाषा में लोच और
१. हिन्दी काव्यधारा, महापण्डित राहुल सांकृत्यायन, प्रथम संस्करण, १९४५ ई०, किताव महल इलाहाबाद, पृ० ५२ ।
२. 'ए हिस्ट्री प्राँव इण्डियन लिटरेचर' एम० विष्टरनित्स, १९३३ ई०, खण्ड २, पृष्ठ
५३२ ।
३. 'गायकुमारचरिज', भूमिका माग, डॉ० हीरालाल जैन लिखित |
४ प्रद्युम्नचरित्र, सधार, प० चैनसुखदास सम्पादित, महावीर भवन, सवाई मानसिंह हाईवे, जयपुर, प्राक्कथन, डॉ० माता प्रसाद गुप्त लिखित, पृ० ५ ।
५. हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पं० नाथूराम प्रेमी, जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय. हीराबाग, बम्बई, सन् १६१७, पृ० ५६ ।
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