Book Title: Jain Shodh aur  Samiksha
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 236
________________ INDIAN सांख्यागम में प्रकृति कहलाती है। उनमें कोई अन्तर नहीं है। सब समान हैं। सब की शक्तियाँ समान हैं। उस मां भारती से समस्त विश्व व्याप्त है। ऐसा प्राराषक ही सच्चा भक्त है, जिसमें दूसरों के प्रति निन्दा और कटुता का भाव मा गया, वह सात्विकता की बात नहीं कर सकता । उसका भाव दूषित है। जिसने भक्ति क्षेत्र में भी पार्टीबन्दी की बात की वह भक्त नहीं और चाहे कुछ हो। ऐसा व्यक्ति शान्ति का हामी नहीं हो सकता । उसका काम व्यर्थ होगा और आराधना निष्फल । वीतरागियों की भक्ति पूर्ण रूप से अहिंसक होनी चाहिए, यदि ऐसी नहीं हुई तो भक्त के भावों की विकृति ही माननी पड़ेगी। किन्तु इस क्षेत्र में बहुत हद तक अहिंसा को प्रश्रय मिला, यह मिथ्या नहीं है। उपर्युक्त श्लोक है "तारात्वं सुगतागमे, भगवती गौरीति शैवागमे । बजा कौलिकशासने जिनमते पद्मावती विश्रु ता ।। गायत्री श्रुतिशालिनी प्रकृतिरित्युक्तासि सांख्यागमे । मातर्भारति ! किं प्रभूत भरिणतं, व्याप्तं, समस्त त्वया ।।" यह पावनता जैन हिन्दी कवियों में भी पनपो। उनके काव्य में अपने पाराध्य की महत्ता है, अन्य देवों की बुराई भी। किन्तु अनेक स्थल तरतमांश से ऊपर उठे हैं, या उन्हें बचाकर निकल गए हैं। महात्मा प्रानन्दघन का ब्रह्म अखंड सत्य था । अखंड सत्य वह है जो अविरोधी हो, अर्थात् उनमें किसी भी दृष्टि से विरोध की सम्भावना न हो। कोई धर्म या प्रादर्श, जिसका दूसरे धर्मों से विरोध हो, अपने को अखण्ड सत्य नहीं कह सकते। वे खण्ड रूप से सत्य हो सकते हैं । प्रानन्दघन का ब्रह्म राम, रहीम, महादेव, ब्रह्मा और पारसनाथ सब कूछ था। उनमें आपस में कोई विरोध नहीं था। वे सब एक थे । न उनमें तरतमांश था और न उनके रूप में भेद था। महात्मा जी का कथन था कि जिस प्रकार मिट्टी एक होकर भी पात्र-भेद से अनेक नामों से पुकारी जाती है, उसी प्रकार एक अखण्ड रूप आत्मा में विभिन्न कल्पनाओं के कारण अनेक नामों की कल्पना कर ली जाती है। उनकी दृष्टि से निज पद में रमने वाला राम है, रहम करने वाला रहमान है, कर्मों का कर्षण करने वाला कृष्ण है, निर्वाण पाने वाला महादेव है, अपने रूप का स्पर्श करने वाला पारस है, ब्रह्म को पहचानने १. पद्मावती स्तोत्र, २० वां श्लोक, भैरवपद्ममावती कल्प, अहमदाबाद, परिशिष्ट ५, पृ०२८ । HOM ArriPiririmarAPPYORS -

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