________________
WA
है। भक्त 'तिया' बनता है और भगवान 'पिय' यह दाम्पत्य भाव का प्रेम जैन कवियों की रचनाओं में भी होता है। बनारसीदास ने अपने 'अध्यात्मगीत' में मात्मा को नायक और 'सुमति' को उसकी पत्नी बनाया है। पत्नी पति के वियोग में इस भांति तड़प रही है, जैसे जल के बिना मछली । उसके हृदय में पति से मिलने का चाव निरन्तर बढ़ रहा है। वह अपनी समता नाम की सखी से कहती है कि पति के दर्शन पाकर मैं उसमें इस तरह मग्न हो जाऊँगी, जैसे बंद दरिया में समा जाती है। मैं अपनपा खोकर पिय सूमिलगी, जैसे प्रोला गलकर पानी हो जाता है। अन्त में पति तो उसे अपने घर में ही मिल गया। और वह उससे मिलकर इस प्रकार एकमेक हो गई कि द्विविधा तो रही ही नहीं। उसके एकत्व को कवि ने अनेक सुन्दर-सुन्दर दृष्टान्तों से पुष्ट किया है। वह करतूति है और पिय कर्ता, वह सुख-सीव है और पिय सुख-सागर, वह शिवनींव है और पिय शिवमन्दिर, वह सरस्वती है और पिय ब्रह्मा, वह कमला है और पिय माधव, वह भवानी है और पति शंकर, वह जिनवाणी है और पति जिनेन्द्र ।।
१. मैं विरहिन पिय के प्राधीन,
त्यो तलफों ज्यों जल बिन मीन । होहुँ मगन मैं दरशन पाय,
ज्यौं दरिया में बूद समाय । पिय सों मिलों अपनपो खोय, प्रोला गल पाणी ज्यों होय ।
अध्यात्मगीत, बनारसी विलास, पृ० १५६-६० । २ . पिय मोरे घट मैं पिय माहिं ।
जल तरग ज्यों दुविधा नाहिं । पिय मो करता मैं करतूति ।
पिय ज्ञानी में ज्ञान विभूति । पिय सुखसागर में सुख सींब,
पिय शिवमन्दिर में शिवनींव । पिय ब्रह्मा मैं सरस्वति नाम,
पिय माधव मो कमला नाम । पिय शंकर में देवि मवानि, पिय जिनवर मैं केवलवानि ।।
अध्यात्मगीत, बनारसी विलास, पृ० १६१ ।
96.4 55 5
6
579
५६75555599