Book Title: Jain Shodh aur  Samiksha
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 199
________________ कवि ने सुमति रानी को 'राधिका' माना है । उसका सौंदर्य और चातुर्य सब कुछ राधा के ही समान हैं। वह रूप-सी रसीली है और भ्रम रूपी ताले को खोलने के लिए कीली के समान है। ज्ञान मानु को जन्म देने के लिए प्राची है और मात्म स्थल में रहने वाली सच्ची विभूति है । अपने धाम की खबरदार और राम की रमनहार है । ऐसी सन्तों की मान्य, रस के पंथ मीर ग्रन्थों में प्रतिष्ठित और शोभा की प्रतीक राधिका सुमति रानी है ।" सुमति प्रपने पति 'चेतन' से प्रेम करती है। उसे अपने पति के अनन्त ज्ञान, बल और वीर्य वाले पहलू पर एक निष्ठा है । किन्तु वह कर्मों की कुसंगत में पड़कर भटक गया है, अतः बड़े ही मिठास भरे प्रेम से दुलारते हुए सुमति कहती है, "हे लाल ! तुम किसके साथ और कहाँ लगे फिरते हो । प्राज तुम ज्ञान के महल में क्यों नहीं प्राते । तुम अपने हृदय तल में ज्ञान दृष्टि खोलकर देखो, दया, क्षमा, समता और शाँति-जैसी सुन्दर रमणियाँ तुम्हारी सेवा में खड़ी हुई हैं। एक-से-एक अनुपम रूप वाली हैं। ऐसे मनोरम वातावरण को भूलकर और कहीं न जाइये । यह मेरी सहज प्रार्थना है । " बहुत दिन बाहर भटकने के बाद चेतन राजा भाज घर मा रहा है । सुमति के प्रानन्द का कोई ठिकाना नहीं है। वर्षों की प्रतीक्षा के बाद पिय के १. रूप की रसीली भ्रम कुलप की कीली, शील सुधा के समुद्र झील सीलि सुखदाई है । प्राची ज्ञान मान की प्रजाची है निदान की, सुराबी निरवाची ठोर सांची ठकुराई है। धाम की खबरदार राम की रमनहार, राधा रसपंथनि में ग्रन्थनि मे गाई है । सन्तन की मानी निरवानी रूप की निसानी, यातं सुबुद्धिरानी राधिका कहाई है ।। नाटक समयसार, प्राचीन हिन्दी जैन कवि, दमोह, पृ० ७९ । २. कहां-कहां कौन संग लागे ही फिरत लाल, श्रावो वयो न श्राज तुम ज्ञान के महल में । कहू विलोकि देखो अन्तर सुदृष्टि सेसी । कैसी-कैसी नीकी नारि ठाढ़ी हैं टहल में । एक-तें - एक बनी सुन्दर सु.रूप. धनी, उपमा न जाय गनी वाम की चहल में 1 ऐसी विधि पाय कहूँ भूलि श्रौर काज कीजे, बीनती सहल में । एतो कह्यो मान लीजं ब्रह्मविलास, मैया भगवतीदास, बम्बई, द्वितीया वृत्ति, सन् १९२६ ई०, शत प्रष्टोत्तरी, पद्म २७, पृ० १४ । 55555555555$$$$

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