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की राजमल्लीय टीका पढ़ी और उससे वे कुपथगामी हो गये। जब पाण्डे रूपचन्द्र जी वहाँ पाये तो उनसे गोम्मटसार पढ़ने के उपरान्त उनका ज्ञान निर्मल हुमा। बनारसीदास ने इस गोष्ठी में पढ़ा, सुना और मनन किया । परिणामस्वरूप वे पंडित बन गये । कवित्व शक्ति तो उन्हें जन्म से ही मिली थी। इस पाण्डित्य के समन्वय से उनकी रचनाएँ 'भावसंकुल ज्ञान' की प्रतीक हैं।
यह 'सली' प्रागे चलकर 'वारणारसिया सम्प्रदाय' के नाम से अभिख्यात हुई । इस सम्प्रदाय की विशेषता थी आध्यात्मिक कविता । बनारसीदास के उपरान्त कुपरपाल प्रमुख व्यक्ति थे, जिन्होंने इस प्राध्यात्मिक परम्परा को विकसित किया । महामहोपाध्याय मेघविजय जी ने अपने 'युक्ति प्रबोध' में, उनकी चतुर्दिक में व्याप्त ख्याति को स्वीकार किया है। कुपरपाल की प्रेरणा से ही हेमराज ने 'सितपट चौरासी बोल' की रचना की थी। जगजीवन भी इस 'सैली' के गण्यमान्य व्यक्ति थे। उनके प्रोत्साहन से हेमराज ने पंचास्तिकाय की भाषा टीका लिखी थी। आगे चलकर वि० सं० १७८१ में भधरदास भी इसी सम्प्रदाय के सदस्य बने । उन्होंने आध्यात्मिक चर्चा में रस लिया और प्रसाद गुण युक्त कविता भी रची । मनराम को तो बनारसीदास का सान्निध्य प्राप्त हुआ था । 'मनराम विलास' में भाव-गर्भित आध्यात्मिकता ही अभिव्यजित हुई है।
कवि द्यानतराय (वि० सं० १७३३) के समय में प्रागरे में पं० मानसिंह और बिहारीदास की 'सैली' चलती थी । मानसिंह की 'सैली' से प्रभावित होकर द्यानतराय की जैन धर्म में प्रगाढ़ श्रद्धा हुई थी। उस समय दिल्ली में पं० सखानन्द की सैली मान्य थी। दिल्ली आने पर कवि द्यानतराय इस सैली के सदस्य बन गये थे । यद्यपि द्यानतराय की पूजाओं और प्रारतियों में भक्ति का स्वर ही प्रबल है, किन्त उनके पद प्राध्यात्मिकता के प्रतीक हैं । आध्यात्मिकता से युक्त होते हुए भी ऐसे सरस पदों की रचना हिन्दी का अन्य कोई कवि नहीं कर सका। हिन्दी के इस महत्वपूर्ण योगदान का श्रेय पं० मानसिह और पं० सुखानन्द की सैलियों को दिया जाना चाहिए । जयपुर, सांगानेर और बीकानेर में भी ऐसी ही सैलियाँ थीं। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि लक्ष्मीचन्द्र सांगानेर की 'सैलो' में व्युत्पन्न बने थे।
सैलियों के अतिरिक्त कहीं-कहीं उच्च जैन शिक्षा देने के लिए विद्यालय भी थे। प्राचीनकाल में तो ऐसे विद्यालय चम्पा, राजगृह, वैशाली, हस्तिनापुर, बनारस और श्रावस्ती आदि अनेक नगरों में फैले हुए थे, किन्तु मध्यकाल तक आते-आते उनका नितान्त अभाव हो गया था । बनारस-जैसे एक दो स्थानों पर
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