Book Title: Jain Shodh aur  Samiksha
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 195
________________ ही शिष्ट रह गए थे। पांडे रूपचन्द्र को जैन दर्शन का अध्ययन करने के लिए बनारस भेजा गया था । वहाँ रहकर उन्होंने क्षेत्र व्याकरया, साहित्य और दर्शन में विचक्षणता प्राप्त की थी । बनारसीदास की शुद्ध प्राध्यात्मिक चेतना पांडे रूपचन्द की ही देन है। श्वेताम्बर विद्वान् यशोविजय जी उपाध्याय, जिन्होंने हिन्दी में 'जस विलास' का निर्माण किया था, एक गृहस्थ से पुरस्कार-स्वरूपं धन पाकर बनारस गये और वहाँ तीन वर्ष तक विविध दार्शनिक ग्रंथों का अध्ययन करते रहे । विनयविजय जी को भी गम्भीर विद्वत्ता बनारस में अध्ययन करने से ही प्राप्त हुई थी। विनय विजय ने 'विनय विलास' की हिन्दी में रचना की थी। वह एक प्रसिद्ध कृति है । मध्यकालीन जैन हिन्दी के कवियों को उर्दू और फारसी का भी अच्छा ज्ञान था । विशेषकर उन कवियों को जो दिल्ली और धारा की श्चोर के रहने वाले थे । 'भैय्या' भगवतीदास के 'ब्रह्मविलास' में अनेक ऐसी कविताएँ हैं, जिनमें उर्दू-फारसी के शब्दों की बहुलता है । कवि बनारसीदास ने जौनपुर के नवाब के बड़े बेटे किलिच को संस्कृत उर्दू-फारसी के माध्यम से ही पढ़ाई थी । द्यानतराय के पदों में उर्दू के शब्द बिखरे हुए हैं। विनोदीलालजी का 'नेमजी का रेखता' फारसी मिश्रित उर्दू में लिखा गया है । इन कवियों को उर्दू-फारसी का ज्ञान दो प्रकार से मिला था - एक तो मकतब और मदरसों से, दूसरे उस्तादों और मौलवियों से, जो बहुत कम रुपयों पर घर पढ़ाने चले जाते थे । इतिहास की किताबों में भले ही औरंगजेब को संकीर्ण विचारों का बताया गया हो, किन्तु यह सच है कि उसने मदरसों और मकतबों का जाल-सा बिछा दिया था। उसके द्वारा शिक्षा प्रणाली में भी पर्याप्त सुधार किया गया । इसके लिए जैन कवियों ने औरंगजेब की प्रशंसा की है । प्रसिद्ध कवि रामचन्द्र और जगतराम ने उसके शासन को सख-चैन से भरा तथा न्यायपूर्ण बतलाया है । उस समय मकतब तो नितांत राज्य की भोर से ही संचालित होते थे, किन्तु मदरसों में अधिकांश ऐसे थे, जो धनवंतों के सहयोग पर निर्भर थे । जैन श्रीमन्तों ने इन मदरसों को सबसे अधिक दान दिया था । अकबर ने तो मदरसों के अतिरिक्त हिन्दू विद्यार्थियों के लिए अनेक विद्यालयों की भी स्थापना की थी । इनमें हिन्दू, जैन और बौद्ध साहित्य और दर्शन का अध्ययन होता था । अकबर ने मागरा में एक विशाल पुस्तकालय की भी स्थापना की थी। उसमें जैन धर्म के ग्रन्थों का अच्छा संचय था । सम्राट अकबर ने वि० सं० १६३८ में श्री हीर SARKARSK १५.३ Like

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