Book Title: Jain Shodh aur  Samiksha
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 187
________________ FOREVEAFE HI - -- Sahyamanan ews he . कन्याओं की बलि ही उत्तम श्रद्धांजलि थी। बजयानी तान्त्रिक सम्प्रदाय का भक्त श्मशान में मुर्दे की पीठ पर मासीन होकर, मदिरा के नशे में ध्वस्त, कपालपात्र में सद्यः जात नर-रुधिर का पान करता हुमा जिन मन्त्रों का उच्चारण करता है, वे भक्ति के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण थे । किन्तु इस सबके पीछे भी परब्रह्म का दर्शन ही मुख्य था, जो चिर शान्ति का प्रतीक है। अर्थात् भक्त इन हिंसात्मक साधनाओं के परिपेक्ष्य में भी शान्ति चाहता था। उसे अपने प्रयास के ढंग की चिन्ता नहीं थी, भले ही वह उपहासास्पद रहा हो । उसे शान्ति प्राप्त न हो सकी, क्योंकि उसके प्रयत्न गलत थे। प्रशान्त साधनों से शान्ति की खोज मृगमरीचिका है। यह वैसा ही है, जैसा रुधिर से धोकर किसी वस्त्र को धवल रूप में प्राप्त करने की अभिलाषा और कीचड़ से मलकर किसी वर्तन की निर्मलता में विश्वास करना । बनारसीदास का जन्म विशुद्ध अहिंसक परम्परा में हुआ था। वे हिंसा की बात सोच भी नहीं सकते थे। वैसे मध्यकालीन जैन, संस्कृत-प्राकृत साहित्य मन्त्र-तन्त्र से प्रभावित हुआ । उनकी देवियाँ मन्त्राधिष्ठात्री बनीं, शक्ति का अवतार मानी गई । वे भी दुर्जनों के लिए कराला और साधुओं के लिए उदारमना थीं।' किन्तु उनमें हिंसात्मक प्रवृत्ति नहीं पनप सकी, कैसे, यह एक लम्बा विषय है । जहाँ तक जैन हिन्दी कवियों का सम्बन्ध है, उन्होंने उस देवी की अधिक आराधना की, जो मन्त्र-तन्त्र से नितान्त अस्पये थी। वह थी देवी सरस्वती। जैन हिन्दी के अधिकांश काव्यों का प्रारम्भ सरस्वती-वन्दना से हुआ। महाकाव्यों और खण्ड काव्यों के मध्य 'सरस्वती' को प्रतिष्ठित स्थान मिला। मुक्तक रूप में भी उसकी स्तुतियों की रचना की गई। उन्होंने प्राचीन जैन पुरातत्व और संस्कृत-प्राकृत के स्तोत्रों की ही भाँति सरस्वती को शुक्लवर्णा, हंसवाहना, चर्तु भुजा, वरद कमलान्वितदक्षिरणकरा और पुस्तकाक्षमालान्वितवामकरा के गीत गाये । बनारसीदास का 'शारदाष्टक' उसका प्रतीक है। उसमें १० पद्य हैं। आगे की समूची सरस्वती-वन्दनाओं पर उसका प्रभाव है। उससे भूधरदास भी अछूते नहीं बच सके हैं । यद्यपि आज तक भारत के प्रत्येक जैन मन्दिर में भूधरदास की सरस्वती-वन्दना' का अधिक उच्चारण होता है, किन्तु इसका कारण उसका अधिक प्रचार और प्रकाशन ही कहा जा सकता है। जहाँ तक संगीतात्मक लय का सम्बन्ध है, वह बनारसी में ही अधिक है । एक उदाहरण देखिये "अकोपा अमाना अदम्भा अलोभा श्रु तज्ञान-रूपी मतिज्ञान शोभा । १. देखिए मेरा ग्रन्थ, 'जन भक्तिकाव्य की पृष्ठभूमि', पृ० १४१-१८२ । २. बनारसी विलास, जयपुर, पृ० १६५-६७ । 50 55 55 55 55 55 553 PXX X5 5.55 5569019

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