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भूधरदास (वि० सं० १७८१) एक प्रतिभासम्पन्न कवि थे। उनकी रचनाएं अपने प्रसाद, गुरण और भाव-लालित्य के लिये प्रसिद्ध हैं। जनशतक, भूधरविलास, पदसंग्रह, जखड़ी, विनतियाँ, बारह भावनाएं, बाईस परीषह और स्तोत्र उनकी मुक्तक कृतियां हैं । उन्होंने पार्श्वपुराण नाम के एक महाकाव्य का भी निर्माण किया था। यह एक उच्चकोटि का मौलिक काव्य है। इसमें महाकाव्य के सभी गुरण सन्निहित हैं। इसकी रचना वि० स० १७८१ में हुई थी। कवि भवानीदास (वि० सं० १७६१) के लिखे हुए १८ मुक्तक काव्यों का पता चला है। इन रचनाओं के आधार पर सिद्ध है कि वे आगरे के रहने वाले थे, और उनका जन्म श्वेताम्बर जाति में हुआ था। इन कृतियों में चौबीस जिनबोल, चौबीसी के कवित्त, नेमि-हिण्डोलना और नेमिनाथ-राजमति गीत प्रसिद्ध हैं।
अजयराज पाटणी (वि० सं० १७६२-१७६४) आमेर के रहने वाले थे। उनकी जाति खण्डेलवाल और गौत्र पाटणी था। उन्होंने पार्श्वनाथ-सालेहा की रचना वि० सं० १७६३ में की थी। वे रूपक काव्यों के लिखने में सिद्धहस्त थे। उनके लिखे हुए चरखा-चउपई, शिवरमणी का विवाह और जिन जी की रसोई ऐसे ही गीत हैं।
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