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पात्रकेशरी ( ईसा की पांचवीं छठी शताब्दी) के 'बृहत्पंचनमस्कार स्तोत्र' मानतु' - गाचार्य (वि०सं० सातवीं शताब्दी मुनि चतुर विजय ) के 'भक्तामर स्तोत्र', मट्टाकलंक ( वि० सं० सातवीं शताब्दी) के कलंक स्तोत्र, बप्पमट्टि ( ई० ७४३-८३८ ) के 'चतुर्विंशति जिन स्तोत्र', धनंजय ( वि० सं० प्राठवीं नवीं शताब्दी ) के 'विषापहार स्तोत्र' और प्राचार्य हेमचन्द्र ( जन्म स० ११४५, मृत्यु सं० १२२९ ) के 'वीतराग स्तोत्र' में भक्ति रस चरम आनन्द की सीमा तक पहुँच गया है। इनमें भी 'भक्तामर स्तोत्र' की ख्याति सबसे अधिक है । इसमें ४८ पद्य है । सादृश्य विधायक उपमा, उत्प्रेक्षा प्रौर रूपकों के प्रयोग से बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव की ऐसी सफल अभिव्यक्ति कम स्तोत्रों में देखी जाती है। भक्त मर स्तोत्र का पढ़ने वाला श्राज भी भाव विभोर और तन्मय हुए बिना नहीं रहता ।
कुछ विद्वानों का कथन है कि अपभ्रंश में स्तुति स्तोत्रों का निर्माण नहीं हुआ । इसी आधार पर वे हिन्दी के भक्ति-काव्य को अपभ्रंश से प्रभावित नहीं मानते । किन्तु जैन भण्डारों की खोज के अधार पर सिद्ध हो चुका है कि संस्कृत और प्राकृत की भांति ही प्रपभ्रंश में भी स्तोत्र और स्तवनों की रचना हुई थी । कवि धनपाल (वि० सं० ११ वीं शताब्दी) ने 'सत्यपुरीय महावीर उत्साह,' जिनदत्त सूरि (जन्म ११३२, मृत्यु १२११ वि० सं०) ने 'चर्चरी' और 'नवकारफलकुलक' तथा देवसूरि (जन्म ११५३, मृत्यु १२११ वि० सं०) ने 'मुनिचंद्रसूरि स्तुति' का निर्माण अपभ्रंश में ही किया था। एक श्री जिनप्रभसूरि हुए हैं, जिनको डा० विण्टरनित्स ने सुलतान फीरोज (वि० सं० १२२० - १२६६ ) का समकालीन बतलाया है। ये जिनप्रभसूरि, विविध तीर्थकल्प के रचियता जिनप्रभसूरि से भिन्न थे । उन्होंने जिनजन्माभिषेक:, जिनमहिमा और मुनिसुव्रत स्तोत्रम् की रचना की थी । श्री धर्मघोषसूरि ( वि० सं० १३०२ - १३५७ ) ने भी महावीरकलश का निर्मारण अपभ्रंश में ही किया था। पाटण के जैन भण्डार में अपभ्रंश का भक्ति - साहित्य इतना अधिक है कि उस पर पृथक खोज की श्रावश्यकता है । जैनों में अनेक कवि ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने एक स्तोत्र में छः भाषात्रों का प्रयोग किया है । उनमें सोमसुन्दर सूरि ( वि० सं० १४३० - १४६६) का 'षडभाषामय स्त्रोत्राणि' प्रसिद्ध है । यह जैन- स्तोत्र समुच्चय में प्रकाशित हो चुका है ।
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जैन देवियों की भक्ति में अनेक स्तुति स्तोत्रों की रचना हुई थी। मैने पी० एच० डी० के लिये प्रस्तुत किये गये अपने शोध निबन्ध में देवी पद्मावती, अम्बिका, चक्रेश्वरी, ज्वालामालिनी, सरस्वती, सच्चिया और कुरुकुल्ला के
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