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याचेऽहं याचेऽहं जिन तव चरणारविन्दयोर्भक्तिम् ।
याचेऽहं याचेऽहं पुनरपि तामेव तामेव ॥१८॥ तीनों लोकों में भगवान् वीतराग के अतिरिक्त कोई रक्षा करने वाला नहीं है । ऐसा देव न कभी भूत में हुमा और न भविष्यत् में होगा। भक्त का भगवान् से निवेदन है कि, प्रतिदिन भव-भव में मुझे भगवान् जिनेन्द्र की भक्ति उपलब्ध हो । हे जिनेन्द्र ! मैं बारम्बार यही प्रार्थना करता हूँ कि आपके चरणारविन्द की भक्ति सदैव प्राप्त होती रहे । मैं पुनः पुनः उसी की याचना करता हूँ।
विघ्नौधाः प्रलयं यान्ति शाकिनीभूतपन्नगाः । विषो निर्विषतां याति स्तूयमाने जिनेश्वरे ॥१६॥
भगवान् जिनेन्द्र की स्तुति करने से विघ्नों के समूह-रूप शाकिनी, भूत और पन्नग सभी विलीन हो जाते हैं और विष निर्विषता को प्राप्त हो जाता है ।
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