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(२७) किंतु जीवात्माका गुण है।
नास्तिक-आपका कहना ठीक है आपने हमारे मतव्यका परापर राडन कर दिया। मगर जितना जोर हमारे मतव्यके सदन राणया उता व-उससे अधिक अपने मनव्यके मडनमे लगाइये और जात्माको अन्छी तरहसे प्रत्यक्षादि प्रमाणसे सिद्ध कीनिये।
आस्तिक-लीजिये, आत्मा प्रत्यक्ष है इस्के गुण चैतन्यके प्रत्यक्ष होनेसे जिस्का गुण प्रत्यक्ष है वो गुणीभी प्रत्यक्ष होता है। प्रयोग ऐसे है-"प्रत्यक्ष आत्मा स्मृति जिज्ञासादि तहणाना स्वसवेदन प्रत्यक्षत्वात् । इह यस्य गुणा प्रत्यक्षा समत्यक्षः दृष्ट' यथावट इति प्रत्यक्ष गुणश्च जीपस्तस्मात् प्रत्यदाः "॥
मतला-स्मरण ज्ञान र जिज्ञासादि (जाननेकी इच्छा) आत्मारे गुणाके प्रत्यक्ष होनेसे आत्माभी प्रत्यक्ष है । क्यों कि जगत्मे यह एक साधारण नियम है कि जिसका गुण मन्यक्ष है उस गुणका धी गुणीभी प्रत्यक्षही होताहै । यत
गैर गुणीके गुण नहा रहसक्ता-" यत्रेव योदृष्टगुण, सतत्र, कुभादि वनिप्पतिपक्षमेतदिति वचनात् " जैसे घटको जिस जगहपर देखते है उस्को रुपादि गुणभी उसी जगहपर होते है। इसलिये जर गुण मत्यक्ष होताहै तो घटभी मत्यक्ष होता है। इसी तरहसे स्मरण ज्ञान हमें प्रत्यक्ष होता है कि इस वक्त मैं