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( ३३२) और ऐसाभी लिखाहै कि,जैनेभ्यः प्रददौ च तीर्थतिल्कं शत्रुजयो-धरम् ॥
इस प्रकार शाह मूरिजीको जैनती को मालिकी दी. और अलावा इसके जगद्गुरुकी पदवी समर्पण की. ई. स. १५८४ में फतेपुर छोडा और अलाहबाद (प्रयाग ) में चौमासा किया चातुर्मास पश्चात् गुजरातको लौट आये और १५८७ में पटना आये और १५८८ में पटनेके जैनमंदिरमें सुपार्श्व और अनंतनाथस्वामिकी मूर्तियां स्थापन एवं प्रतिष्टाकी शाह सर्वनिका तेजपालसे समर्पण कीगईथी. वाद तेजपालने मूरिजीके हाथसें शत्रुजय तीर्थपर आदेश्वर भगवानकी मूर्ति और देवस्थान जो बनायाया वह स्थापित एवं प्रतिष्टा अंजन शिलाका करवाई. ___इस सुत्राफिक शाही दरवारमें इज्जत-प्रतिष्ठा पाकर और __शाहसे कई पारमार्थिक सनदें नेक-कामें करवाकर आप स्वस्थानपर वापिस हुए. और वृद्धापकालमें पटनामेही रहे. और किसी कार्य वशदीव आना हुआ. और ई. स. १५९२ में वही स्वर्ग सिधाये. कई चमत्कार आपकी दहनभूमिपर दीखे. वहांपर एक स्तूप (देहरी ) बंधा हुआ है. आपक वाद विजयसेनसरि पद विराजे एवं नेता हुए.
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