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(१२६ ) -जरा गायरां जागीरदारारा, कामेतीया, चोधरीया, भोमियांदिसे, गुरां केवलचंद्रजी बीकानेर जावे छ सो रात रहे जीगरी चोकी पोरो जावतो राखजो हर वीदा हुवे जठे आगलै गाम पुगाय दीजो. संवत १९१७ का मिती पोह वदी १२.
श्रीमान् ठाकुर सहावने यहां तक कहाकि,-आप बीकानेरसे शीघ्र लौट आयें और यही आपकी सेवा भक्ति होती रहेगी वीराजे रहै और सहावणे श्रावकोंनेभी आपसे यही कहा की महाराज! आप हमारे यहांपर विराजे रहै हमारे तो अब आपही आचार्य हैं। किन्तु आपकी इछा बीकानेर जाने की होनेसें आप रवाना हो चूके. बीकानेरमेंभी आपका बहुत कुछ सत्कार हुआ, क्यों नहो , कहा है “ विद्वान् सर्वत्र पूज्यते" परस्परमें लडनेवाले दोनों पक्षके भातृगणभी आपसे सदा संतुष्ट रहतेथे इसका कारण तटस्थ दृत्तिही समझें । __शहर बीकानेरमेंभी कइ व्यक्ति आपके उपदेशरों धर्ममें पावंद हुए. आपके सदुपदेशसे श्रीमान् धर्मचंद्रजी सुराणेजीकी धर्म पत्निने शत्रुजयादि तीर्थोकी यात्रा निमित संघ निकाल. नेका निश्चय किया और माघ सुदीमें संघ वीकानेरसे रवाना हुआ. उक्त संघके मुख्याधिष्टाता आपही थे उन दिनोंमें रे
वे न होनेसे खुशकी रास्तेही संघ रवाना होनेसे गाडी ५०० ऊंट ४००, घोडेस्वार रक्षाके लिये १०० और मनुष्य सं