Book Title: Jain Nibandh Ratnakar
Author(s): Kasturchand J Gadiya
Publisher: Kasturchand J Gadiya

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Page 311
________________ ( २९१) देव गुरु, और धर्मका स्वरूप ले० शेरसिंह कोठारी सैलाना (मालवा) निवासी. __मात कालका समय है, स्वस्थचित हुवे • कोई लोग अपनी धर्मनियामें मग्न होरहे है तथा कई व्यवहारादिकमें निपुण पुस्पोंने अपना कार्य शुरु करदिया है. शरद् कालका वस्त होनेसे कितनेही आलसी दरिद्री लोग अवतक अपने विस्तरेमें सो रहे हैं ऐसा होना अनुचित्त जानकर सूर्य ययपि अपने हाथोंके जरिये उनको उठानेकी कोशीस ज्यादे ज्यादे कर रहा है, तदपि वे आलस्य वश उठना नहीं चहाते गरज जब कि एक महर भर दिन बरावर चडि आया उस वरतमें एक महात्मा, जिनका कि नाम सुखसागर सूरि था, अपनी सर्व क्रियासे निटत्त होकर शान्ततासे योद नवीन प्रय की रचना कर रहेथे चे सूरीश्वर ऐसे तेजस्वी और शान्त स्वभावीये कि जिनोन उनके दर्शन किये उनसे शायदही ऐसा कोई दौर्भागी निम्ला होगा जो म्वय शान्तताको प्राप्त न टुवा हो. अहा! जय कि उनोंने उस ग्रथको लिखनेको कलम उठाइ उसी वरनमें अपनी अनेक विदुपी शिष्याओंसे परवरित पुप्यशाली पुण्यश्रीजी महारान वहा सूरीश्वरजीफे दर्शनार्थ

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