Book Title: Jain Nibandh Ratnakar
Author(s): Kasturchand J Gadiya
Publisher: Kasturchand J Gadiya

View full book text
Previous | Next

Page 336
________________ ( ३१६ ) सर्व लोगोंकी अत्यन्त उत्कंठा देखकर गुरुवर्य बोले. हे महानुभावों एक चित्तसे मुनाना मैं निक्षेपीका वर्णन संक्षेप तौरपर कहताहु. निक्षेपे चार है. ? नाम, २ स्थापना, ३ द्रव्य, ४ और __ भाव. इनका वर्णन अनुयोगहादस्थानांगादि सुत्रोमे बहुत ही उम्दा तौरपर किया गया है. देखो श्री स्थानांग मूत्रमें अरिहंत भगवान्पर निक्षेपे इस प्रकारसे उतारे हैं: गाथा नाम जिणा निण नाना, ठवण जिणा जिण निगंद पडिमाओ; दव्प जिणाजिण जीवा, भाव जिणाजिण समवसरण त्या. अर्थ-नामजिन है सो गिनेश्वर भगवानका नाम जप्ते ऋषभ स्थापना जिनश्री अरिहंत भंगवंतकी प्रतिमा है, द्रव्य जिन वे हैं जो अविकालमे जो होनेवाले है. जैसे-श्रेणिक प्रमु खका जीव और भावजिन खुद प्रभु केवल ज्ञान सहित होकर समवशरणपर विराजते हैं तब कहेजाते हैं. इसी प्रकार सिद्ध भगवानपर निक्षेप इस प्रकार उत्तर सक्ते हैं. ? नाम-सिद्ध

Loading...

Page Navigation
1 ... 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355