Book Title: Jain Nibandh Ratnakar
Author(s): Kasturchand J Gadiya
Publisher: Kasturchand J Gadiya

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Page 345
________________ ( ३२३) " एव मालब मेटपाट धनिकान् श्री गुर्जरस्वामिनो जित्वाऽबर भूपतिर्निजपुरे सौरयात्समापेतिवान्, राज्य पालयति पचनिपुण पाइगुम्य सच्छक्तिमान, सम्यग्दर्शनपण्डिता दरकरस्तन्छाम्ब शुश्रूपया ।।१२१॥" " अन्येषु स ममस्त दर्शनयतीनाकार्य धर्मस्य सत्तत्त्व पृच्छति शुद्ध बुद्धिविभर स्माथों शिवस्यादराद ।" उक्त काव्योंका अर्थ उपर आही चूका बादशाह गुद विद्वानोंसे वादविवाद किया करताया. इसोसे उसको यह पुरा यकीन हो चूकाया कि हरएक धर्मके कुछ न कुछ म तत्व है । आलीवा श्रमण और ब्राह्मणोंसे बादशाइने हमेशा पहश (विवाद ) करनेका इन्तिजाम कियाया और वे दसरे विद्वानोंपर अपनी तसे नीतिसे हमेगा गालिग रहतेथे यहा तक के शाहके दिलपर इन्हींका परा असर हो चुमाथा सैर अरहमें हीरविनयमूरिजीके जीवन सरफ और उनसी शाहनेकी हुई प्रतिष्ठा की और नजर करना चाहिये। आप पालनपुर निवासी एमरजी नामक किसीच्यापारीके पुत्र थे आपरी माताका नाम नायर्यापाई या १३ सालकी १ अमण शब्द-जैन यति शल्या पर्यायवाची गद है. "मुमुयु. अमणो यति" इति हेमचन्द्र - - - - -

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