Book Title: Jain Nibandh Ratnakar
Author(s): Kasturchand J Gadiya
Publisher: Kasturchand J Gadiya

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Page 348
________________ ( ३२६ ) देशात् गूर्जरतोऽर्थ सूरिषभा आकारिताः सादरं, श्रीमत्साहि अकवरेण विषयमेवातसंज्ञं शुभम् ।। साहिवखानने शाहोफरमान पातेही तमाम अहमदावादके जैनियोंको इकट्ठा किया और उससे आगाहीदी इसवक्त मू. रिजी गंधार नामक स्थानमें थे. और उन्हे शाही फरमानकी खबर दी गई. सूरिजीने देखा कि, शाहके मुलाकातले जैन धर्मकी तरकी होतो यह जानकर शाहके तरफ जाना मंजूर किया और अहमदाबाद तशरीफ लाये । साहवरखाल स्यूरिजीसे गुत्फगु करके निहायत खुश हुए और हाथी, घोडे, द्रव्य और कई चीजे नजर करने लगा मगर सूरिजीने स्वीकारनेसे इन्कार किया. स्मृरिजीने फतेपुरकी तरफ सिर्फदो आदमियों के साथ जाना आरंभ किया। रास्तेमें आप विजयसेनदारिजर्जासे पटना-मुकामपर मिले सिद्धपुरसे पाए भीलों के मुल्कमें आये. वहां उनका सरदार अर्जुनने आपकी बड़ी इज्जतकी: और हत्या करना बंद किया यह आपकेही उपदेशका नतिजा __ मेडतेमें भी मुगल स्वादारने मृरिजीका वडा सत्कार किया वहांसे सांगानेर पहुँचकर आपने विमल हपको पेशगीमें शाहको आपके आनेकी आगाही देनेको भेजा. शाहने सूरिजीके आनेकी खबर पातेही अपने अफसरानको बड़ी इज्जतसे सूरिजीका स्वागत करनेका हुक्म किया. शाहीरथ, हाथी,

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