Book Title: Jain Nibandh Ratnakar
Author(s): Kasturchand J Gadiya
Publisher: Kasturchand J Gadiya

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Page 338
________________ ( ३१८ ) है कि आजसे मैं मिथ्या धर्मको छोडकर जैन धर्म अंगीकार करता हुं. हे गुरुवर्य आपके सद्दश मुनिराजोके विचरनेसे यह भारत भूमि पवित्र होती है इतनाही नही बल्के श्री वीर सासनकी दिन प्रतिदिन उन्नती होती है. पुण्यश्रीजी-हे कृपालु आज आपके वचनोसे आनंद हुवा लो तो हुवा ही है मगर एक जीवकों आपने मिथ्यात्वसे नीकलकर शुद्ध समाहितधारी बनाया इसका मुझे अत्यन्त हर्ष है और वह हर्प कथन करनेको असमर्थ हे. शिप्यवर्ग-दीनदयाल, दीनानाथ, आपने आज इन शिप्योपर महत् उपगार किया है, है करुणासिन्धू तकलीफ माफ करे तथा औरभी कोई मौकेपर चर्चा करते रहेगें एसी उम्मेद हैं. ___ इतनी वार्तालाप हो जानेपर पुण्यके खजाने सदृश श्रीमत्ती परम उपगारीणी गुरुणीनी श्री पुग्यश्रीजी सर्व साधु मंडलीको वंदना करके अपने स्थानपर पधारे तथा अन्य साधु वर्गभी अपनी २ क्रियामें तत्पर हुरे. यज्ञदत्तजीभी चित्तमें उल्लास लाकर सादर गुरु गुरणीकों वंदना करके गृहपर चलेगये.

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